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जैनेन्द्र के जयवर्द्धन- पूर्व उपन्यास : एक पर्यवेक्षण
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अनुभूति के गंभीर स्तर पर दृष्टिगत करने के विषय हैं। मेरी राय में, सुनीता के व्यक्ति सत्य में समष्टि-निष्ठा है, व्यक्ति गरिमा की समष्टिजन्य जीवन-निष्ठा है । व्यक्ति - गरिमा को समष्टिजन्य जीवन-निष्ठा को मैं सुनीता निष्ठा कहूँगा । व्यक्तिपरक संवेदनात्मक तात्त्विकता को जैनेन्द्र ने समाज - बोध की जीवन-निष्ठा दी है। जैनेन्द्र की व्यक्ति - गरिमा जीवन निष्ठा से परिपूर्ण है, अपनी सहनशक्ति और वहन-शक्ति के अनुसार सामाजिकता, तात्त्विकता और संवेदनात्मकता का परिचय वह देती है । जैनेन्द्र का व्यतीत अपवाद जैनेन्द्र के व्यष्टितंत्र में नामपंथी प्रतिक्रियावाद अवश्य है ।
सुनीता-हृदय के व्यामोह में सुनीता स्वीकार करती है - " पति ही में तो नारी की सम्पूर्ण कृतार्थता है ।"
कल्याणी- परिधि के प्रतिवाद में नारी का कृतार्थ हो जाना है, कल्याणी की नारी यह मानती है । सुनीता सोचने की बड़ी स्थिति में है - " मैं इस घर से टूट कर जाऊँगी तो जिऊँगी नहीं इसी घर की दीवारों के भीतर मेरा स्थान है । घर बंधन है, तो हो; लेकिन मुझे तो मोक्ष भी यहाँ ही पाना है ।" घर से सुनीता टूटती नहीं, टूट नहीं पाती । नारी के प्रति जैनेन्द्र का दृष्टिकोण यह प्रकट करता है ।
'सुनीता' के पत्नीत्व और नारीत्व में पंचशील सिद्धांत प्रतिपादित और कार्यान्वित किया गया है ।
सुनीता - चिन्तन के आलोक में 'सुखदा' का अध्ययन किया जा सकता है
जैनेन्द्र विचार - साक्षात्कार के कथाकार हैं । विचार-साक्षात्कार को जैनेन्द्र ने यथार्थविमुख आदर्श से परिवेष्ठित नहीं किया- विचार साक्षात्कार को यथार्थ की जीवन - गरिमा और जीवन-निष्ठा प्रदान की है। जैनेन्द्र का विचार - साक्षात्कार विचारवाद से भिन्न है --- विचारवाद में जीवन-निष्ठा का तात्त्विक सौंदर्य नहीं रहता ।
जैनेन्द्र का ‘त्यागपत्र' मूलप्रवृत्ति, नारीत्व और व्यक्ति-सत्यों की कथा है । 'त्यागपत्र' की मृणाल जैनेन्द्र के नारी-दर्शन को एक बड़ी सीमा तक स्पष्ट करती है । वस्तुतः 'त्यागपत्र' की मृणाल अपने में एक वाद है - जैनेन्द्र की नारी का प्रतिनिधि पात्र । मृणाल में नारी की मूल प्रवृत्तियों और भारतवाद का अस्तित्व-संघर्ष है अर्थात् मृणालवाद है । मृणालवाद को जैनेन्द्र ने 'त्यागपत्र' का अस्तित्त्व- श्राधार प्रदान किया है । मृणालवाद जैनेन्द्र-चिंतन के मार्ग में है, जैनेन्द्र-चिंतन का चरम लक्ष्य नहीं। जैनेन्द्र के उपन्यासवाद का 'मैनिफेस्टो' अथवा जैनेन्द्र के उपन्यासवाद की माचार सहिता नहीं ।
'त्यागपत्र' उपन्यास जैनेन्द्र के व्यक्ति-बोधात्मक उपन्यासवाद का परिचायक है | 'त्यागपत्र' के जागरूक माध्यम से जैनेन्द्र ने साहित्य में एक वाद विशेष का