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________________ श्री सियारामशरण गुप्त दुर्लभ व्यक्तित्व ... जैनेन्द्र जी के सम्बन्ध में आप जो निबन्ध-संकलन प्रकाशित करने जा रहे हैं, वह यास स्तुत्य है । हृदय से मैं उसकी सफलता चाहता हूँ। पर उन जैसे साहित्यकार पर कुछ लिख, इस योग्य मेरी शारीरिक स्थिति नहीं है । वे मेरे लिए साहित्यिक-मात्र नहीं हैं, आत्मीय और पारिवारिक भी हैं । उनके घर में उनके अग्रज के रूप में मैं ठहरता हूँ। वैसा ही सम्मान भी वहां पाता हूँ । श्रेष्ठ साहित्यकारों में सम्भवतः वही ऐसे व्यक्ति हैं, जिनके लिए प्रापग्राप मुझे नहीं कहना पड़ता । कह नहीं सकता, अपने किस पुण्य में मुझे उन जैसा भाई मिला है । सारी भारतीय भाषानों के आधुनिक साहित्य का परिचय न होने पर भी मेरी धारणा है कि उनकी जोड़ का प्रातिम व्यक्तित्व अन्यत्र दुर्लभ है । मुझ जैसे सामान्य ज्ञान के व्यक्ति को उन्होंने ग्राना ग्रान्तरिक स्नेह दिया है, यह बात मुझे प्रायः विस्मय से अभिभूत करती रहती है, पर उनके कृतित्व के विषय में मेरी उपर्युक्त धारणा, जहाँ तक मैं सोच सकता हूँ, निरपेक्ष ही है। .....।"
SR No.010371
Book TitleJainendra Vyaktitva aur Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaprakash Milind
PublisherSurya Prakashan Delhi
Publication Year1963
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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