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डाक्टर वृन्दावनलाल वर्मा
जैनेन्द्र जी से सान्निध्य
लगभग तीस वर्ष हुए जब श्री जैनेन्द्रकुमार जी से मेरी पहली भेट हुई । वह श्री मैथिलीशरण गुप्त के पास चिरगांव गये थे। वहां से झांसी आये । पहली भेंट में ही मेरे ऊपर प्रभाव हुा । बात करते-करते कुछ मनन करने लगते थे । दृष्टि ऊपर उठ जाती थी, फिर बात करने वाले पर ।
उनके मैंने कई उपन्यास पढ़े । एक तो उन्होंने उसी समय, पहली भेट की घड़ी में, भेट किया था।
इसके बाद भी अनेक बार उनसे भेट करने का मुझे सुअवसर मिला । एक बार वह विख्यात समाजसेवी और प्रसिद्ध कवि श्री वियोगी हरि जी के साथ ही मेरे घर पधारे । खूब बातें हुईं। बड़ा प्रानन्द रहा । फिर संध्या की बेला एक स्थान पर उनका और श्री वियोगी हरि जी का स्वागत-समारोह हुया । भाषण हुए । श्रोता अानन्द मग्न थे।
___ मैं तब गद्गद् हो गया, जब दिल्ली नगर पालिका के हिन्दी संघ वालों ने १९६२ ई० की 8 जनवरी के दिन मेरा ७४ वां जन्म-दिवस मनाया। समारोह के अध्यक्ष श्री जैनेन्द्र कुमार जी थे। समारोह सन्ध्या समय हुआ था । मैं दिन में ही उनके निवास स्थान पर मिलने के लिए जा पहुँचा था । ऐसे मिले, ऐसे मिले-लिपटे रहे एक दूसरे से कई क्षण--कि इन दोनों की आँखें झलक पाई।
उपन्यासकार बड़े कुशल, गम्भीर विचारक और बहुत ही स्नेहिल हैं श्री जैनेन्द्र कुमार । परमात्मा से प्रार्थना है कि वे शतायु हों।