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________________ जैनेन्द्र कुमार : एक मूल्यांकन भी वे साहित्य में असाधारण रूप से 'सेक्स' की दलदल में क्यों फंस जाते है ? उनका जीवन पूर्णत: 'चेस्ट' है । फिर यह हादसा किस तरह घटित हो जाता है ? लगता है बाल्यकाल में उन्हें खुल कर खेलने का अवसर नहीं मिला। एक जन्म-जात कलाकार सौन्दर्य की भूख लेकर पैदा होता है; यह भूख परितृप्ति तो कलाकृतियों में आत्मसंतोष ढूंढ़ती है । नहीं पाती जैनेन्द्र जी एक असाधारण क्षमता - सम्पन्न कलाकार होते हुए भी मध्यवर्ग के बृत्त से ऊपर नहीं निकल सके, क्योंकि वे कल्पना से साहित्य की रचना करते हैं । कल्पना मात्र से साहित्य-सृजन करने वाले साहित्यकार अपनी निजता के घेरे से श्रागे नहीं निकल पाते । १८१ जो साहित्यकार गोर्की की तरह जनता में रहकर जीवन बिताते हैं, उनके साथ मानवीय विजयों का अभिमान और पराजयों का विवेक रहता है । जनता को विलक्षण जनों का ऐसा स्वरूप कभी-कभी देखने को मिलता है, जिन्हें देखकर कल्पना भी निहाल हो जाती है । जन-जीवन साहित्य का अक्षय प्रेरणा स्रोत है, जिसकी महिमा कल्पना से परे की वस्तु है। जैनेन्द्र जी जीवन की रंगस्थली से हटकर एक छोटे-से दायरे में सिमटते आ रहे हैं । श्राज लेखक की स्थिति अजीब हो गई है । आज वह प्रास्तिकता श्रौर नास्तिकता के सन्धि-स्थल पर खड़ा है; उसके चारों ओर तबाही और बर्बादी है । इस वस्था में साहित्यकार का राजनीतिक पक्ष उभार में श्राता है । मंचों पर से काम करने वाले सक्रिय राजनीतिज्ञ न होकर भी साहित्य की भी समस्या है, पर यह उनकी निजी समस्या भी है । जैनेन्द्र जी का मन दुनिया में है; वे जीवन से प्रेम करते हैं । विराग उनमें नहीं है; जो सोचते हैं, वही सच्चाई के साथ कहते हैं । समाजवादी होना चाहे श्राज का फैशन बन गया हो, पर वह फैशन के लिए समाजवादी कभी नहीं बनेंगे । उनका रंग अपना है, जो प्रायु के साथ गहरा होता जाता है । जो कुछ लिखेंगे, उसमें से ठोस आवाज निकलेगी । उसमें न तोते का रटा हुआ सबक़ होगा, न महापुरुषों की जीवनियों और प्रवचनों से इकट्ठे किये गये बोध वाक्यों की प्रतिलिपि । जैनेन्द्र जी की व्यक्तिगत क्षमताएं भी आयु के साथ बढ़ रही हैं । गत्यात्मकता प्रो छिता से वर्षों पहले हिन्दी को आभूषित किया था। आज वह अंग्रेजी के श्रेष्ठ वक्ता, लेखक और वार्ताकार बन चुके हैं और हिन्दी के साहित्यकारों में पहले मी हैं, जो यदि आक्सफोर्ड विश्व विद्यालय से भी बुलावा ग्रा जाय तो एक लेखक की पूर्ण मर्यादा को सुरक्षित रखते हुए दीक्षांत भाषरण कर सकते हैं । <101
SR No.010371
Book TitleJainendra Vyaktitva aur Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaprakash Milind
PublisherSurya Prakashan Delhi
Publication Year1963
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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