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यथार्थ और उपन्यासकार जैनेन्द्रकुमार बाहर झाँका है।
ऐसा लगता है कि जैनेन्द्र जी अपनी कृतियों को सिद्धान्तों और विचारों की भूल-भुलैया में फंसाना उचित नहीं समझते और न ही उन्होंने उपन्यासों के द्वारा उपदेशक बनना ही उचित समझा है । हिन्दू नारी में 'कट्टो', 'सुनीता', 'मृणाल'
और 'कल्याणी' चार प्रमुख चरित्रों का निर्माण जैनेन्द्र जी ने किया है और कुछ परुष पात्रों का भी जिससे उनकी शैलीगत विशिष्टता का परिचय मिल जाता है। पहली बार हिन्दू गृहस्थ के घर का पर्दा उठाकर आपने अन्दर झाँकने का प्रयत्न किया है। इनकी कृतियों में पाठकों को सामयिक सामाजिक नव-निर्माण की ओर भरपूर झुकाव दिखलाई पड़ेगा । 'परख' की बाल-विधवा और अन्तिम अंश, 'सुनीता' की पति समर्पित व्याहता, जो पति की इच्छा के लिये ही एक गुमराह तथा 'सेवस' के प्रति कुण्ठित व्यक्ति को मानवीय भूमि पर लाना चाहती है, तक आकर नारी की एक पतिनिष्ठा की भावना में आमूल परिवर्तन हो जाता है । 'सुमन' और 'निर्मला' की भाँति 'सुनीता' पति द्वारा शंकालु दृष्टि से नहीं देखी जाती । जहाँ निर्मला' तथा 'सुमन' पर पुरुष के सम्पर्क मात्र से ही समाज में निन्दा की वस्तु बन जाती है और उनकी नैतिक पवित्रता की सर्वथा उपेक्षा ही की जाती है, वहीं पर 'सुनीता' अपने पति 'श्री कान्त' के द्वारा पर-पुरुष हरि प्रसन्न' को नारी पाकर्षण के प्रति जागरूक बनाने के लिये उसके साथ एकान्त में रहने के लिये एक प्रकार से विवश की जाती है। नारी का अस्तित्व पति की बाहों तथा घर की चहार दीवारी से निकल कर समाज में मुक्त रूप से विकसित होने के लिये उन्मुख हो उठा, जो रूढ़िग्रस्त मान्यताओं के प्रति एक प्रकार का विद्रोही स्वर था।
'त्याग-पत्र' की मृणाल बुना पति के यहाँ आश्रय न पाकर पीहर से भी ठकराई जाती है । परिणामस्वरूप वह एक बनिये के साथ भाग जाने के लिये बाध्य हो जाती है । और भी उसकी आत्मा अव्यभिचरित रहती है। इस प्रकार बाह्य सामाजिक मूल्यों की अपेक्षा आन्तरिक सदाचारों को यहाँ पर अधिक मूल्य प्रदान किया गया है । इस प्रकार के आन्तरिक मूल्यों पर बल देने वाले साहित्य रचना की ओर बंगला के प्रसिद्ध उपन्यासकार 'शरत् चन्द्र' ने सर्वाधिक ध्यान दिया है। उनके उपन्यास 'गृहदाह' की 'अचला' में हमें 'मृणाल' की पवित्रता के दर्शन हो सकते हैं, यद्यपि दोनों की परिस्थितियों में महान् अन्तर है । 'अचला' के शारीरिक पतन के मूल में उसका असन्तुष्ट 'सैक्स' और परिवार में एक बाहरी व्यक्ति का प्रवेश पा जाना है, जबकि 'मृणाल' के पतन में स्वच्छन्द प्रेम और आर्थिक विषमता का महत्वपूर्ण हाथ है । 'मृणाल' को समाज की जिन गंदी गलियों से गुजरना पड़ा है, उन पर चलकर उसने अन्तर्मन में चलने वाली पाप वृत्तियों, कुसंस्कारों एवं पुरुषों की