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(५२) उनके जीवनपर्यन्त वना रहता है। उसका फिर परिवर्तन नहीं होता। ___ बालक परिवारके माता, पिता, भाई, बहन आदि कुटुम्बियोंमें यद्यपि प्रत्येकका अनुकरण करता है, परन्तु उन सबमें माता ही प्रधान है । माताके साथ किसीकी तुलना नहीं की जा सकती। किसी विद्वानने इस विषयमें अपना अभिप्राय लिखा है कि " बालकका चरित्रगठन और भावी उन्नतिका होना एक मात्र माताके गुण और दोषके ऊपर निर्भर है। इस विषयमें पिताकी अपेक्षा माताकी ही प्रधानता स्वीकार करनी पड़ती है। उसने और भी लिखा है कि यूरोपमें यह पद्धति है कि किसी कारखानेका मालिक जब अपने कारखानेमें किसी बालक अथवा बालिकाको किसी कामपर नियुक्त करना चाहता है तब वह उनकी माताका चरित्र अच्छा जान लेनेपर उन्हें निःसन्देह अपने यहां रख लेता है।
पृथिवीके जितने बड़े बड़े महात्माओंके जीवन चरित्र पढ़े है, जो अपनी असाधारण योग्यताके द्वारा संसारमें प्रसिद्ध हो गये है, उनमें अधिक महात्माओंने यह बात मुक्तकण्ठसे स्वीकार की है कि हमारी विद्या और बुद्धिकी जितनी कुछ उन्नति हुई है उसका मूल कारण हमारी माता है।"
" महावीर नेपोलियन बोनापार्ट सदा यह कहा करता था कि सन्तानका भावी सुख दुःख अथवा उसकी उन्नति अवनति यह सब माताके उपर ही निर्भर समझना चाहिए । माताकी दी हुई शिक्षा ही हमारे ज्ञान और उन्नतिकी प्रधान कारण है। " __ इनके सिवा और एक एजनीतिज्ञ अमेरिकाके विद्वानने लिखा है कि "बालकपनमें मैरी माता हाथ पकडकर बैठ जाती और