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________________ ऊपर उदाहरणो द्वाग ने पुद्गल और मात्मा दोनों वस्तुओ के बगावो में उत्पाद, व्यय और धौन्य रूप में परिणगन मी विवेचना की है । ग्वागी गमलभद्र ने आप्त मीमामा में परतु की प्रव्यपर्यायो ( व्यजन पर्यायो ) को लेकर भी उत्पाद, व्यय और धोव्य पिगे परिणमन की विवेचना की है जो निम्न प्रकार है घटमौलिसयार्थो नाशोत्पादस्थितिप्ययम् । शोफप्रमोदमाव्यस्थ्य जनो याति सहेतुकम् ।।५।। पयोयतो न दध्यत्ति न पयोति घधियत । मगो रस यती नोभे तस्मात्तत्त्व प्रयात्मकम् ।।६।। अर्थ-स्वर्णकार द्वारा सोने के घडे को मिटाकर उसका मुाट बना देने पर जो घरे के खरीददार को विपाद, मुकुट के परीददार को हर्ष और गोते ने यरीददार को विपाद या हपं न होगर साम्यगाव उदित होता है ये तीनो व्यक्तियों की भिन्नभिन प्रकार को मानमिक वृत्तिया बिना कारण के सम्भव नहीं हैं, गलिये समझ में आता है कि वस्तु उत्पाद-व्यय-श्रीव्यस्प से प्रयात्मक ही है अथवा देखने में आता है कि जिन व्यक्ति ने नम्पूर्ण गोरसो में से केवल दुग्ध सेवन का व्रत ले रक्खा है वह व्यक्ति दधि का सेवन नहीं करता है क्योकि वह समझता है कि गोरस की दुग्ध पर्याय न रह कर दधि पर्याय बन जाने के कारण उसकी प्रतिज्ञा के अनुसार वह उसके लिये अभक्ष्य हो चुका है, ऐसे ही जिसने समन्त गोरसो में से केवल दधि सेवन फा व्रत ले रपया है वह दुग्ध का सेवन नहीं करता है क्योकि वह समझता है कि दुग्धपर्याय दधिपर्याय नहीं है इसलिये उसकी प्रतिज्ञा के अनुसार वह उसके लिये अभक्ष्य है और ऐसे ही जिस व्यक्ति ने अगोरस सेवन का व्रत ले रक्खा है वह दुग्ध और दधि
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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