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________________ दोनो का ही सेवन नहीं करता है क्योकि वह समझता है कि दुग्ध पर्याय मे दधिपर्याय का अभाव व दधिपर्याय मे दुग्धपर्याय का अभाव रहने पर भी दुग्ध और दधि दोनो पर्यायो मे गोरसपना तो है ही, इसलिये वह अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार दुग्ध और दधि दोनो को ही अभक्ष्य मानता है । इस तरह इस उदाहरण से भी समझ मे आता है कि वस्तु उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य रूप से त्रयात्मक ही है। प्रत्येक वस्तु अथवा वस्तु के स्वभाव मे उपर्युक्त प्रकार से परिणमित होने की योग्यता स्वत सिद्ध ही मानी गयी है यह वस्तु अथवा वस्तु के स्वभाव की लब्धि या शक्तिरूप अप्रकट विशेषता है तथा इसके आधार पर वस्तु अथवा वस्तु के स्वभाव मे होने वाला परिणमन उपयोग या व्यक्ति रूप प्रकट विशेषता है । वस्तु अथवा वस्तु के स्वभाव मे विद्यमान परिणमित होने की वह योग्यता ही उपादान शक्ति कहलाती है और उसके आधार पर होने वाला परिणमन उसका कार्य कहलाता है । आगे परिणमन के भेदो पर विचार किया जाता है। परिणमन के भेद परिणमन के भेदो की विवेचना करने से पूर्व मैं यह वतला देना चाहता हूँ कि ऊपर के कथन से निम्नलिखित बाते फलित होती है (१) वस्तु और उसका स्वभाव दोनो हो स्वत सिद्ध हैं तथा स्वत सिद्ध होने से दोनो ही अनादि काल से अनन्त्रकाल तक रहने वाले है। (२) दोनो ही परिणमनशील है और दोनो का वह परिणमन उनकी अपनी परिधि मे ही हुआ करता है अर्थात्
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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