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इत्य नो चेदसत प्रादुर्भूतिनिरकुशा भवति । परत प्रादुर्भावो युतसिद्धत्व सतो विनाशो वा ।। ६॥
अर्थ-यदि वस्तु को अनादि नही माना जायगा तो जिन वस्तुओ का आज अस्तित्व नही है उन नवीन वस्तुओ की निराबाध उत्पत्ति होने लगेगी, यदि वस्तु को अनिधन नही माना जायगा तो जिनका आज अस्तित्व है उनके विनाश का प्रसग उपस्थित हो जायगा, यदि वस्तु को स्वसहाय नही माना जायगा तो अन्य वस्तु से अन्य वस्तु की उत्पत्ति होने लग जायगी और यदि वस्तु को निर्विकल्प नही माना जायगा तो स्वरूप और स्वरूपवान दोनो की स्वतन्त्रता सिद्ध हो जाने से दो के मेल से बनी हुई वस्तु मानने का प्रसग उपस्थित हो जायगा।
इस गडवडी का जो अन्तिम परिणाम होगा उसको भी पचाध्यायी मे उसी स्थान पर आगे पढिये ।
(१) असत् की उत्पत्ति के प्रसग में
असत प्रादुर्भाव द्रव्याणामिह भवेदनन्तत्वम् । को वारयितु शक्त कुम्भोत्पत्ति मृदाद्यभावेऽपि ।। १० ।।
अर्थ--असत् की उत्पत्ति स्वीकार करने से एक तो वस्तओ को सख्या बतलायी हई सख्या से इतनी आगे बढ जायगी जिसका कही अन्त नहीं होगा, दूसरे मिट्टी आदि घटोत्पत्ति के साधनो के अभाव मे घट की उत्पत्ति का निवारण करना अशक्य हो जायगा।