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________________ १७ जा सकता है और अनित्य उपादान शक्तियो के विषय मे प० जी से भिन्न मत रखने वालो का कहना है कि वे अनित्य उपादान शक्तिया निमित्तो की अधीनता मे ही उत्पन्न हुआ करती हैं अत. उन्हे नियत मानने का कोई प्रयोजन नही रह जाता है कारण कि ऐसा मानने पर भी निमित्त की अकिंचिकरता सिद्ध नही होती है। स्वय प० फूलचन्द्र जी ने भी वस्तु की नित्य उपादान शक्ति को सीमावद्ध नही माना है क्योकि उन्होने जैनतत्त्वमीमासा के केवलज्ञानस्वभाव मीमासा प्रकरण मे पृष्ठ २६६ पर निम्नलिखित कथन किया है “लोक-अलोक मे जितने पदार्थ और उनकी पर्यायें हैं उनसे भी अनन्तगुणे पदार्थ और उनकी पर्यायें यदि हो तो उन्हे भी उसमे जानने की सामर्थ्य है।" । इतना अवश्य है कि प० फूलचन्द्र जी चूंकि यह मानते है कि जब जैसा कार्य होता है तब निमित्त भी तदनुकूल ही मिला करते है इसीलिये उनके मतानुसार यह कहा जा सकता है कि प्रत्येक वस्तु मे कार्य की अनित्य उपादान शक्तिया उतनी ही सभव है जितने काल के पैकालिक समय है। परन्तु प० जी से भिन्न मत रखने वालो को यह इसलिये मान्य नही है कि उनके मतानुसार प० जी का यह सिद्धान्त ही गलत है कि जव जैसा कार्य होता है तब निमित्त भी तदनुकूल ही मिला करते है । उनके मत से तो यह सिद्धान्त ही सत्य है कि जब जैसे निमित मिलते है तब कार्य भी उपादानगत योग्यता के आधार पर उन्ही के अनुसार होता है । इस तरह कार्याव्यवहित पूर्वक्षण के अवसर पर वस्तु मे कार्यरूपपरिणत होने योग्य नाना उपादान शक्तियो का सद्भाव सिद्ध हो जाता है लेकिन प्राप्त निमित्तो की अनुकूलता और वाधक कारणो के अभाव के आधार पर एक
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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