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________________ १६ हित पूर्वक्षणवर्ती पर्याय होता है मो उनका यह कथन भी निर्विवाद है परन्तु जैसा कि ऊपर बतलाया जा चुका है कि विवाद इस बात का है कि स्वपरप्रत्यय कार्य को कारणभूत कार्याव्यवहितपूर्वक्षणवर्ती पर्याय रूप अनित्य उपादान की उत्पत्तिन को जहा भी प० फूलचन्द्रजी स्वप्रत्यय कार्य की तरह अपने-आप मानते हैं वहा उनसे मतभेद रखने वाले उसकी उत्पत्ति को स्वप्रत्यय कार्य की तरह अपने-आप न मानकर परवस्तु के सहयोग से मानते हैं । इसे भी आगे स्पष्ट किया जायगा । (४) प० फूलचन्द्रजी का यह कथन भी विवादपूर्ण है कि जव वस्तु कार्याव्यवहितपूर्वक्षणवर्ती पर्याय मे पहुँच जाती है तव वह वस्तु नियम से उसी कार्य की उत्पादक होती है । यह कथन विवादपूर्ण इसलिये है कि प० जी से भिन्न रखने वालो का कहना है कि उस समय भी उसमे नाना उपादान शक्तियो का सद्भाव रहा करता है अत जिस कार्य के अनुकूल निमित्तो का योग होगा उसी कार्य की उत्पत्ति होगी अन्य की नही । इस मतभेद का आधार यह है कि जहा प० फूलचन्द्रजी का यह कहना है कि जैपा कार्य होता है वैसा हो निमित्तो का योग मिलता है वहा उनसे मतभेद रखने वालो का कहना है कि जैसा निमित्तो का योग मिलता है वैसा ही उपादान शक्ति के आधार पर कार्य होता है । (५) यद्यपि प० फूलचन्द्र जी ने अपने उक्त मत की पुष्टि मे कार्योन्पत्ति के लिये वस्तु मे उतनी योग्यताये मान्य की है जितने काल के त्रैकालिक समय है परन्तु उनकी यह मान्यता उनसे भिन्न मत रखने वालो को मान्य नही है क्योकि उनका कहना है जब वस्तु की कार्योत्पत्ति सम्बन्धी नित्य उपादानशक्ति स्वभावसिद्ध है तो उसे किसी भी दशा मे सीमावद्ध नही किया
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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