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________________ ३५८ पट भो तैयार हो गाता है। अर्थात् मिट्टी में जब भी परिणमन होगा तो वह अनुमून निमित्तों के सहयोग से घट अथवा सकोरा आदि प्रतिनियत नही होगा । इतना ही नियति का अभिप्राय यहाँ नना चाहिये । काल के विपय में भी मेरा कहना यह है कि मिट्टी में अनुक्त निमित्तो के महयोग में जब भी घटी उत्पत्ति हामी तो वह म्यान, कोग, कुमूल आदि के क्रम से ही होगी। यह नहीं हो गयता है कि इस क्रम में कभी व्यतिक्रम भी हो जाये15म तरह इस नियत क्रम की सूचना देने वाला गाल को मानना चाहिये । इसी तरह वस्तु मे जितने स्वपरप्रत्यय परिणगन होते हैं साधारणतया अनुकूल निमितो के सहयोग में हो हआ करते हैं और उनमें भी कोई परिणमन ऐसे भी हा करते है जिनमे साधारण निमित्तो के साथ-माथ प्राणियो द्वारा किया गया प्रयत्न (पुरुपार्थ ) भी कारण होता है । इस प्रकार यह व्यवन्धा निश्चित होती है कि जितने भो स्वप्रत्यय परिणमन है वे सब वस्तु में पाये जाने वाले स्वभाव, नियति और क्रमानुसार होते हैं तथा जो स्वपरप्रत्यय परिणमन है वे सव स्वभाव, नियति और क्रमानुमार होते हुए भी सामान्य अनुकूल निमित्तो के सहयोग से अथवा इनके साथ-साथ पुरुपकृत प्रयत्न से हुआ करते है। प० फूलचन्द्र जी कहते हैं कि उपादान को तयारी हो जाने पर ही कार्य की उत्पत्ति होती है और मैं भी कह देना चाहता है कि प० जी को इस मान्यता से मेरा कोई विरोध नही है क्योकि मैं मानता हूँ कि स्थास के अनन्तर ही कोग बनता है और कोश के अनन्तर ही कुशूल बनता है तब कही कुशूल के अनन्तर ही घट की उत्पत्ति होती है, परन्तु साथ मे यह
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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