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________________ ३५७ स्वभाव से नित्य उपादान और नियति से क्षणिक उपादान का अर्थ ग्रहण करने का कोई आधार पं० फूलचन्द्र जी ने जैनतत्त्वमीमासा मे नही प्रस्तुत किया है जब कि आचार्य श्री नेमिचन्द्र ने स्वभाववाद का अर्थ कर्मकाण्ड गाथा ८८३ मे और नियतिवाद का अर्थ गाथा ८८२ मे प० फूलचन्द्र के अभिप्राय से भिन्न ही किया है। इसी प्रकार पुरुषार्थ का अर्थ भी गाथा ८६० मे आचार्य श्री ने आत्मा द्वारा अपने मे उत्पन्न उत्साह के सहारे प्रयत्न करने रूप ही किया है । पुरुषार्थ का अर्थ करने मे उनकी दृष्टि वस्तु सामान्य के बल-वीर्य की ओर नहीं रही है। इतना ही नही, काल शब्द का अर्थ स्वकाल करके भी प० जी ने यह बतलाने का प्रयत्न नही किया है कि वह स्वकाल क्या है ? और फिर मैं उनसे (प० जी से) यह भी कहना चाहँगा कि कर्मकाण्ड मे स्थित नियति का लक्षण देखते हुए उसमे आपके द्वारा स्वीकृत काल का अन्तर्भाव क्यो नही हो सकता है ? इसका भी स्पष्टीकरण उन्हें करना चाहिये था। मैं कह आया हू कि कार्य के प्रति स्वभाव, पुरुषार्थ, काल, नियति और कर्म ( निमित्त ) के समवाय को कारण मानने मे मेरा साधारणतया विरोध नही है, लेकिन यहाँ पर स्वभाव से मेरा अभिप्राय आगमानुसार वस्तु की स्वत:सिद्ध परिणमन शक्ति का है अर्थात् परिणमन के लिये वस्तु मे परिणमन करने की स्वत सिद्ध योग्यता का अस्तित्व होना आवश्यक है। यदि यह योग्यता वस्तु मे स्वत सिद्ध न हो तो फिर अन्य कोई वस्तु उसमे परिणमन नही करा सकती है। इसी प्रकार वस्तु के परिणमन प्रतिनियत ही हुआ करते है। यह असम्भव है कि मिट्टी से कभी जुलाहा आदि के सहयोग से
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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