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________________ वाहर जाने की तैयारी मे घोडा रूप अर्थ हो विवक्षित है तथा नमक रूप अर्थ अविवक्षित है लेकिन सैन्धव शब्द के दोनो ही अर्थ अभिधेय है । इसी तरह एक ही शब्द नाना भाषाओ में भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयुक्त होता है तो वहाँ पर भी भाषा भेद के आधार विवक्षित और अविवक्षित का भेद अभिधेय मे कर लेना चाहिये। इस तरह प० फूलचन्द्र जी का उपचरित अर्थ को शब्द द्वारा अनभिधेय मान कर असत्यार्थ मानना मिथ्या है इसी तरह उपचरित शब्द को निरर्थकता के आधार पर असत्यार्थ मानना भी मिथ्या है तथा आगमानुसार उपचरित अर्थ का प्रतिपादन करने के आधार पर असत्यार्थ मानना ही सम्यक् है। असत्यार्थता की यही स्थिति सशय आदि मिथ्या अर्थ के प्रतिपादक शब्दो मे भी समझ लेना चाहिये । आगम मे जो नाम, स्थापना, द्रव्य और भावरूप निक्षेप बतलाये गये हैं उन्हें अर्थगत ही स्वीकार किया गया है तथा अर्थगत उस-उस निक्षेप का प्रतिपादन करने के आधार पर शब्द को भी नामादि रूप में विभक्त कर दिया गया है। इनमे से नाम, स्थापना और द्रव्य रूप निक्षेप तो उपचरित अर्थ है तथा भावरूप निक्षेप अनुपचरित अर्थ है । इसी तरह जो शब्द नाम, स्थापना, द्रव्य और भावरूप निक्षेपो मे से भावरूप निक्षेप का प्रतिपादन करता है-वह तो अनुपचरित शब्द है और जो नाम, स्थापना और द्रव्य रूप निक्षेपो में से किसी एक निक्षेप का प्रतिपादन करता है वह उपचरित शब्द है। इन चारो को इस तरह समझा जा सकता है कि जैन शब्द का अर्थ यदि मोक्षमार्गो जीव माना जाय तो जो सम्यर
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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