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________________ ३४५ अर्थ ही नही है ? यह बात दूसरी कि पहला शब्द प्रयोग सशय रूप मिथ्या अर्थ का प्रतिपादन करता है, दूसरा शब्द प्रयोग विपर्ययरूप मिथ्या अर्थ का प्रतिपादन करता है और तीसरा शब्द प्रयोग अनध्यवसित रूप मिथ्या अर्थ का प्रतिपादन करता है। इनमे से कोई शब्द प्रयोग 'बन्ध्यापुत्र' शब्द प्रयोग की तरह निरर्थक या कथन मात्र नही है। यही बात उपचरित शब्द प्रयोग के विषय में भी जान लेना चाहिये । इस तरह अर्थ प्रतिपादन की दृष्टि से यदि विचार किया जाय तो निरर्थक बन्ध्यापुत्र आदि शब्दो को छोडकर उपचरित और सशयादि रूप सभी शब्द अपने-अपने अभिधेयार्थ का प्रतिपादन करने के कारण सत्यार्थ (सार्थक) ही सिद्ध होते हैं असत्यार्थ । निरर्थक) नही । यह बात दूसरी है कि उपचरित शब्द उपचरित अर्थ का प्रतिपादन करते हैं और सशय आदि शब्द अपने-अपने मिथ्या अर्थ का प्रतिपादन करते हैं व मुख्यार्थ का प्रतिपादन नही करते हैं इसलिये असत्यार्थ है। इससे यह सिद्ध हुआ कि अभिधेयरूप अर्थ तीन प्रकार का होता है-एक तो मुख्यरूप, दूसरा उपचरित रूप और तीसरा मिथ्यारूप । और इन सब का प्रतिपादन उस-उस शब्द द्वारा उस-उस शब्द निष्ठ उस-उस प्रकार की अभिधावृत्ति के आधार पर होता है। यहाँ इतना विशेष समझना चाहिये कि मुख्य रूप जो अभिधेय है वह भी विवक्षित और अविवक्षित के भेद से दो प्रकार का हो जाता है । जेसे "सैन्धवमानय" इस वचन मे सैन्धय का अर्थ भोजन के समय नमक रूप हो विवक्षित है और घोडारूप अविवक्षित है । इसी तरह युद्ध की तैयारी मे या कही
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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