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क्रमश कुम्भकार, अध्यापक और पाचक शब्द से प्रतिपादित होते है तो वे शब्दनिष्ठ कौन सी वृति के आधार पर प्रतिपादित होते हैं ? लक्षणा और व्यजना वृत्ति के आधार पर तो प्रतिपादित होते नही हैं क्योकि कुम्भ कर्तृत्व, शिक्षण कर्तृत्व और पाककर्तृव्य इन तीनो मे से कोई भी अर्थ न लक्ष्यार्थ है और न व्यग्यार्थ ही है क्योकि पूर्व मे उपचरित अर्थ से भिन्न ही लक्ष्याथं और व्यग्यार्थ को सिद्ध किया जा चुका है इतना ही नही वह पर यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि लक्ष्यार्थ और और व्यग्यार्थ उपचरित अर्थ की सिद्धि के कारण होते हैं । यत शब्द में अर्थ प्रतिपादन की दृष्टि से अभिधावृत्ति, लक्षणावृत्ति और व्यजनावृत्ति नाम की तीन ही वृत्तिया मानी गयी हैं अत यही मानना होगा कि उपचरित अर्थ का प्रतिपादन शब्दनिष्ठ अभिधावृत्ति के आधार ही होता है। इतना ही नही, जितना भी सशय, विपर्यय और अनध्यवसाय रूप मिथ्या अर्थ है वह भी शब्द निष्ठ अभिघावृत्ति के आधार पर ही शब्द द्वारा प्रतिपादित होता है । क्या यह मानना उचित होगा कि उपचरित या सशय, विपयय या अनध्यवसाय रूप मिथ्या अर्थ कोई अर्थ ही नही है ? यदि ऐसा माना जायगा तो कुम्भकार, अध्यापक और पाचक रूप उपचरित शब्दो और सशय विपर्यय तथा अनध्यवसित रूप मिथ्या शब्दो मे बन्ध्यापुत्र आदि शब्दो से क्या भेद रह जायगा? इसलिये यही मानना पडता है कि कुम्भकार आदि उपचरित तथा सशय आदि मिथ्या शब्द भी वन्ध्यापूत्र आदि शब्दो की तरह निरर्थक नही है किन्तु अर्थ का प्रतिपादन करने वाले हैं। क्या कोई यह कह सकता है कि कि शीप के विषय मे "यह शीप है या चादी" अथवा "यह चांदी है" या "यह कुछ है" इस प्रकार के शब्द प्रयोगो का कोई