________________
३४३
हो केवल कथनमात्र रूप ही वह हो, अपितु इस रूप मे ही वह असत्यार्थ होता है कि वह मुख्य अर्थ का प्रतिपादन नही करके उपचरित अर्थ का ही प्रतिपादन करता है ।
यहां पर अव प. जी के इस अभिप्राय की मीमासा की जाती है कि वे उपचरित अर्थ को शब्द का प्रतिपाद्य अभिधेयें रूप मे नही मानना चाहते हैं जब कि आगम मे शब्द के प्रतिपाद्य मुख्य अर्थ को जिस प्रकार अभिधेय रूप मे स्वीकार किया गया है उसी प्रकार शब्द के प्रतिपाद्य उपचरित अर्थ को भी अभिधेय रूप मे ही स्वीकार किया गया है । मैं प० जी से पूछना चाहँगा कि कुम्भकार, अध्यापक और पाचक शब्दो का प्रतिपाद्य काई अर्थ है या नही ? यदि नही है तो क्या ये शब्द बन्ध्यापुत्र, आकाशकुसुम व शशशङ्ग के समान सर्वथा निरर्थक या कथन मात्र हैं ? तो कहना पड़ता है कि प० जी कुम्भकार, अध्यापक और पाचक शब्दो को बन्ध्यापूत्र आदि शब्दो की तरह सर्वथा निरर्थक तो नही मानते हैं क्योकि उनका कहना है कि ये शब्द इष्टार्थ का बोध कराते है इसलिये उपचरित शब्द से व्यवहृत किये जाते है । अब मेरा कहना यह है कि प० फूलचन्द्र जी को यह तो स्वीकार करना ही पडेगा कि कुम्भकार शब्द का अर्थ कुम्भ कर्तृव्य है, अध्यापक शब्द का अर्थ शिक्षण कर्तृत्व है और पाचक शब्द का अर्थ पाक कर्तृत्व है ऐसा तो वे कह नही सकते कि ये शब्द निरर्थक ही हैं अर्थात् इनका कोई अर्थ ही नही है। केवल वे इतना ही कह सकते है कि कुम्भकार शब्द का कुम्भकर्तृव्य, अध्यापक शब्द का शिक्षण कर्तृव्य और पाचक शब्द का पाककर्तृत्व ये तीनो अर्थ उपचरित अर्थ हैं मुख्य अर्थ नहीं है। अब मैं उनसे यह भी पूछना चाहूगा कि ये तीनो अर्थ जरे