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________________ ३३७ नीम, इमली, नीवू, वस्त्र आदि अर्थ । उपचरित अर्थ वह है जो अपनी पराश्रित सत्ता रखते हुए अर्थात् निमित्त तथा प्रयोजन के आधार पर आरोपित होकर अभिधावृत्ति के आधार पर शब्द द्वारा प्रतिपादित होता है । जैसे कुम्भकार अध्यापक, पाचक (रसोइया) आदि रूप अर्थ । ये अर्थ उपचरित इसलिये हैं कि ये स्वय तो कार्य रूप परिणत नही होते परन्तु अन्य पदार्थ की कार्य रूप परिणति मे सहायक अवश्य होते हैं । अर्थात् मिट्टी ही कुम्भरूप परिणत होती है कुम्भकार तो मिट्टी की उस परिणति मे सहायक मात्र होता है, इसी तरह विद्यार्थी ही पढता है अध्यापक तो पढाता है अर्थात् उसके पढने मे सहायक मात्र होता है और इसी तरह आटा, दाल, चावल आदि ही रसोई रूप परिणत होते हैं पाचक (रसोइया) तो रसोई को बनाता है अर्थात् आटा आदि के रसोई रूप प: रणमन मे सहायक मत्र होता है । लक्ष्यार्थ वह है जो उपचार प्रवृत्ति का निमित्त होता है और शब्दनिष्ठ लक्षणावृत्ति के आधार पर शब्द द्वारा प्रतिपादित होता है । जैसे "मश्वा क्रोशन्ति" यहाँ पर मञ्च और मञ्चो पर बैठे पुरुषो मे विद्यमान आधाराधेय सम्बन्ध तथा 'धनुर्घावति" यहाँ पर धनुर् और धनुर्धारी पुरुष मे विद्यमान सयोग सम्बन्ध या स्वस्वामिभाव सम्बन्ध | व्यग्यार्थ वह है जो उपचार प्रवृत्ति का प्रयोजन होता है और शब्द निष्ठ व्यजनावृत्ति के आधार पर शब्द द्वारा प्रतिपादित होता है । जैसे "अन्न वै प्राणा" यहाँ पर प्राणो के सरक्षण के लिये अन्न को उपयोग की महत्ता की प्रस्थापना तथा "गगाय घोष" यहाँ पर शैत्य व पावनत्वादि की प्रतीति मिथ्या अर्थ वह है जो सराय, विपर्यय या अनध्यवसित रूप मिथ्या अभिधेय के रूप मे शब्द द्वारा प्रतिपादित होता है। जैसे शीप में "यह शीप है या
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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