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________________ ३३८ चांदी" इस वचन से प्रतिपादित सशय रूप अर्थ, शीप में "यह चाँदी है" इस वचन से प्रतिपादित विपर्यय रूप अर्थ और किसी भी वस्तु मे "कुछ है" इस वचन से प्रतिपादित अनध्यवसित रूप अर्थ । यत अर्थ उपयुक्त प्रकार से पांच प्रकार का होता है अत उस-उस अर्थ का प्रतिपादन करने के आधार पर शब्द भी पाँच प्रकार का हो जाता है। अर्थात् मुल्यार्थ का प्रतिपादन करने वाला मुख्य शब्द, उपचरित अर्थ का प्रतिपादन करने वाला उपचरित शब्द, लक्ष्यार्थ का प्रतिपादन करने वाला लाक्षणिक शब्द, व्यग्यार्थ का प्रतिपादन करने वाला व्यजक शब्द और सशय, विपर्यय या अनध्यवसित रुप मिथ्या अर्थ का प्रतिपादन करने वाले क्रमश समय, विपर्यय या अनध्यवाय रूप मिथ्या शब्द। यहां पर इतना विशेष जानना चाहिये कि जिस प्रकार उपयुक्त पांच प्रकार के अर्थ का प्रतिपादन करने के आधार पर शब्द पाँच प्रकार का होता है उसी प्रकार एक शब्द ऐसा भी होता है जिसका कोई अर्थ ही नहीं होता है अर्थात् शब्द निरर्थक भी हुआ करते हैं। जैसे "बन्ध्या का पुत्र", "आकाश के फूल" और "गधे के सीग" आदि । ये वचन न तो मुख्यार्थ का प्रतिपादन करते हैं, और न उपयुक्त उपचरित, लक्ष्य, व्यग्य या सशय, विपर्यय अथवा अनध्यवसित रूप मिथ्या अर्थों मे से किसी भी अर्थ का प्रतिपादन करते हैं क्योकि न तो बन्च्या का पुत्र होता है, न आकाश के फूल होते हैं और न गधे के सीग होते हैं तथा न तो यहाँ पर कोई लक्ष्यार्थ है और न व्यग्यार्थ ही है। इसी तरह निमित्तभूत लक्ष्यार्थ और प्रयोजन भूत व्यग्यार्थ का अभाव होने से उपचरित अर्थ का भी अभाव यहाँ
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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