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________________ ३३५ To फूलचन्द्र जी आदि कहते है कि "मिट्टी शब्द तो कुम्भ निर्माण के प्रति मिट्टी के कर्तृत्व का प्रतिपादन करता है क्योकि मिट्टी मे कुम्भरूप से परिणत होनेरूप कर्तृत्व विद्यमान रहता है परन्तु कुम्भकार शब्द कुम्भ निर्माण के प्रति कुम्भकार व्यक्ति के कर्तृत्व का प्रतिपादन नही करता है क्योकि कुम्भकार व्यक्ति में मिट्टी से निर्मित होने वाले कुम्भ के निर्माण मे सहायक होनेरूप कर्तृत्व विद्यमान ही नही रहता है । अर्थात् मिट्टी स्वय (अपने आप ) ही स्वकाल आने पर कुम्भरूप परिणत हो जाया करती है कुम्भकार व्यक्ति तो वहाँ पर सर्वथा अकिचित्कर ही बना रहता है ।" परन्तु उनका ऐसा कहना पूर्वोक्त प्रकार मिथ्या है । इस कथन से यह निष्कर्ष भी निकल आता है कि प्रकृत मे उपादानकारण को जो निश्चय, परमार्थ, यथार्थ, सत्यार्थ, भूतार्थ, वास्तविक, अन्तरग और मुख्य आदि शब्दो से पुकारा जाता है वह इसलिए पुकारा जाता है कि उपादानकारण कार्यरूप परिणत होता है और निमित्तकारण को जो व्यवहार, अपरमार्थ, अयथार्थ, असत्यार्थ अभूतार्थ, अवास्तविक, बहिरंग और उपचरित आदि शब्दो से पुकारा जाता है वह इसलिए पुकारा जाता है कि निमित्तकारण स्वय (आप) कार्यरूप परिणत न होते हुए भी उपादान के कार्यरूप परिणत होने में सहायक होता है । प० फूलचन्द्र आदि का कहना है कि "निमित्तकारण उपादानकारण की कायरूप परिणति में सहायक भी न होकर सर्वथा अकिञ्चित्कर ही वना रहता है इसलिए व्यवहार आदि उक्त शब्दों से पुकारा जाता है ।" परन्तु उनका ऐसा कहना पूर्वोक्त प्रकार मिथ्या है |
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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