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________________ की गयो है ये चिपय अधिकारी के नामकरण से ही समझ में आ जाते हैं मत. यहा पर उनका स्पष्टीकरण नहीं किया जा रहा है। पं. फूलचन्द्र जी ने पुस्तक प्रारम्भ करने में पूर्व अपने 'आत्मनिवेदन' प्रकरण में यह भी नकेन किया है कि वे अनुन. लता रहने पर कविवर वनाग्मीयागजी, कविवर भूधरदामजी, कविवर दौलतरामजी, कविवर भैया भगवतीदामजी, कविवर भागनन्द्रजी आदि प्रोत. अनुभवी विद्वानों के आध्यात्मिक साहित्य को भी सकलित और मपादित करके प्रकाशित करना चाहते हैं। हमारी धारणा है कि प० जी ने 'जनतन्वमीमासा' के लियने में अपनी जिम विचारधारा को आधार बनाया है उसी विचारधारा या अवलम्बन वे कविवर वनारमीदामजी आदि उक्त प्रौढ विद्वानों के आध्यात्मिक साहित्य के मकलन और सपादन में करेंगे। उसका अभिप्राय यह है कि अब वे अपनी विचारधारा को दृढता के साथ प्रसारित करने की तैयारी मे लगेंगे और यह निश्चित है कि प० जी को अपने इस प्रयास में सफलता मिल जायगी क्योकि प० जगन्मोहनलाल जी शाखी कटनी ने जिस ढग से जनतत्त्वमीमासा का प्राक्कथन लिखा है उससे स्पष्ट है कि वे प० जी की विचारधारा मे पूर्णत सहमत हैं। साथ ही इसमे सदेह नही कि प० जी बहुत से दूसरे विद्वानो को भी सरलता के साथ अपनी विचारधारा का अनुयायी वना लेंगे, कारण कि जैन-सस्कृति के तत्त्वज्ञान के विषय मे विद्ववर्ग में भी साधारण समाज की तरह प्राय, चिन्तनगक्ति की न्यूनता और गतानुगतिकता पायी जाती है। २-आचार्य श्री कुन्दकुन्द स्वामी का समयसार उच्चकोटि का आध्यात्मिक ग्रन्थ है, परन्तु वह इतना गहन है कि
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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