SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 346
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१० इन गाथाओ मे राग शब्द द्वेष का उपलक्षण है इस तरह राग शब्द का अर्थ राग और द्वेप रूप कपाय होता है और इस तरह गाथाओ का अर्थ भी यह होता है कि जिस रूप से जीव मे सम्यग्दर्शन है उस रूप से उसके बन्ध नही होता है और जिस रूप से जोव मे राग तथा द्वेष रूप कपाय है उस रूप से उसके बन्ध होता है । इसी प्रकार जिस रूप से जीव मे सम्यज्ञान है उस रूप से उसके वन्ध नही होता है और जिस रूप से जीव मे राग तथा द्वप रूप कषाय है उस रूप से उसके बन्ध होता है तथा इसी तरह जिस रूप से जीव मे सम्यक्चारित्र है उस रूप से उसके बन्ध नही है और जिस रूप से जीव मे राग तथा द्वेष रूप कषाय है उस रूप से उसके बन्ध होता है । द्रव्य संग्रह और पुरुषार्थसिद्ध्युपाय के उपर्युक्त उल्लेखो से यह स्पष्ट हो जाता है कि सासादन सम्यग्दृष्टि, औपशमिक सम्यग्दृष्टि और क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीवो के जो स्थिति और अनुभाग रूप से कर्म बन्ध होता है उसमे तो कषाय कारण है ही, परन्तु मिथ्यादृष्टि जीव के मिथ्यात्व कर्म का, सम्यग्मिथ्या दृष्टि जीव के सम्यग्मिथ्यात्व कर्म का और क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि जीव के सम्यक् प्रकृति कर्म का उदय रहते हुए भी जो स्थिति और अनुभाग रूप से कर्म बन्ध होता है उसमे भी कपाय ही कारण होती है । तात्पर्य यह है कि मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक् प्रकृति ये तीनो दर्शन मोहनीय कर्म के भेद हैं और दर्शन मोहनोय कर्म उपयुक्ताकार ज्ञान को ही सशय, विपर्यय और अनध्यवसाय रूप से विकृत करता है—यह बात पूर्व मे बतलायी जा
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy