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________________ २८७ काल पदार्थों की अखण्ड एक पर्याय को समय कहते है और नाना समयो के समूह को आवली, घडी मुहूर्त, सेकड, मिनट, घण्टा, प्रहर, दिन, सप्ताह, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, वर्प आदि कहते है। इस तरह पदार्थो की पर्यायो को दो भागो मे विभक्त कर दिया है-एक अति सूक्ष्म पर्याय और दूसरी स्थूल पर्याय । अति सूक्ष्म पर्याय का नाम अर्थपर्याय है और स्थूल पर्याय का नाम व्यञ्जन पर्याय है । जैसे जीव की मनुप्य पर्याय तो स्थूल पर्याय है और उसमे जो क्षण-क्षण का परिणमन है वह अति सूक्ष्म पर्याय है । प्रत्येक पदार्थ के ये परिणमन स्वप्रत्यय और स्वपरप्रत्यय दो प्रकार के होते हैं लेकिन उन परिणमनो का विभाजन एक के पश्चात् एक के रूप मे काल पदार्थों की पर्यायो के आधार पर होता है । टहरे हुए क्रियाशील जीवो और पुद्गलो का जो गमन होता है उसके लिए धर्म पदार्थ अवलम्वन देता है और वे जीव और पुद्गल उस धर्म पदार्थ के अवलम्वन पर गमन करते है। इसी तरह चलते हुए वे जीव और पुद्गल जव ठहरते हैं तब उनके उस ठहरने के लिये अधर्म पदार्थ अवलम्वन होता है और वे जीव और पुद्गल उस अधर्म द्रव्य के अवलम्वन पर ही ठहरते है । जीव पदार्थ सभी पदार्थो को जानने वाले है और सभी पदार्थ जीव पदार्थों के शेय हैं । इसी प्रकार सभी पुद्गल एक दूसरे पुद्गल के साथ मिलते और विछुडते रहते हैं यानि अणु मे स्कन्ध और स्कन्ध से अणु का रूप धारण करते रहते है। इस तरह सभी पदार्थ परतन्त्र भी सिद्ध होते है। जिस प्रकार पुद्गल पुद्गल के साथ मिलते हैं उसी प्रकार जीव भी अनादिकाल से पुद्गलो के साथ मिलकर
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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