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________________ २८६ सभी पदार्थों को वृत्ति ( मौजूदगी) के आधार काल नाम के पदार्थ है । प्रत्येक पदार्थ मे जो भूतता, वर्तमानता और भविप्यता पायी जाती है उसके आधार कालद्रव्य ही हैं । यह विभाजन जीवो और पुद्गलो मे ही सभव है कारण कि पुद्गल ता अणुरूप हैं और सक्रिय हैं तथा जीव यद्यपि समस्त काल पदार्थों के बरावर असंख्यात प्रदेशी हैं परन्तु यथायोग्य छोटेas शरीरो के आधार पर सकोच विस्तार वाले है और सक्रिय है इसलिये ये नियत काल द्रव्यो से कभी सयुक्त नही रहते हैं तो जव जिन काल पदार्थो से ये पुद्गल और जीव सयुक्त रहते है उनकी अपेक्षा उनमे वर्तमानता रहती है, जिन काल पदार्थों से उनका सयोग विच्छिन्न होता है उनकी अपेक्षा उनमे भूतता रहती है और जिन काल पदार्थों के साथ उनका आगे सयोग होने वाला हो उनकी अपेक्षा उनमे भविष्यत्ता रहती है । चूकि आकाश, धर्म और अधर्म निष्किय पदार्थ है और काल भी निष्क्रिय पदार्थ है तथा आकाश, धर्म और अधर्म का सतत सभी काल पदार्थों के साथ सयोग रहता है अत इनमे भूतता, वर्त - मानता और भविष्यत्ता का उक्त प्रकार का विभाजन नही होता है अर्थात् इनमे काल पदार्थो के सयोग के आधार पर सतत वृत्ति ( मौजूदगी) ही रहा करती है । चूकि सभी पदार्थ परिणमनशील हैं और काल पदार्थ भी परिणमनशील है, लेकिन काल पदार्थो की पर्यायों का विभाजन अरणुरूप पुद्गल की अत्यन्त मन्दगति के आधार पर होता है और अन्य सभी पदार्थों को पर्याय का विभाजन काल पदार्थों की पर्यायो के आधार पर होता है, इसलिये यदि पर्यायो के आधार पर भूतता, वतमानता और भविष्यत्ता को ग्रहण किया जाय तो सभी पदार्थों की पर्यायो मे भूतता, वर्तमानता और भविष्यत्ता सिद्ध होती है ।
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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