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________________ २५६ पटक कर निमित्त की अकिंचित्करता को सिद्ध करना चाहते हैं । यानि वे यह सिद्ध करना चाहते है कि प्रत्येक वस्तु मणिमाला के समान नियत स्थिति को प्राप्त अपने त्रैकालिक पर्यायो मे से क्रमश एक-एक पर्याय की भविष्यद्र पता से वर्तमानरूपता और वर्तमानरूपता से भूत रूपता के रूप मे अनादि काल से अपने आप गुजरती हुई चली आई है और अनन्तकाल तक इसी तरह गुजरती हुई चलो जायगी। निमित्त इसमे जब किसी प्रकार का उलट-फेर नही कर सकता है तो फिर निमित्त की उपयोगिता इसमे क्या रह जाती है ? इस सम्बन्ध मे वे केवलज्ञान का भी सहारा लेते हैं और समर्थन मे स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा की गाथाओ को प्रमाण रूप से उपस्थित करते है जो निम्न प्रकार है - ज जस्स जम्मि देसे जेण विहारणेण जम्मि कालम्मि । णाद जिरणेण णियद जम्न वा अहव मरण वा ॥३२॥ त तस्स तम्नि देसे तेण विहारण तम्मि कालम्मि । को सक्कइ चालेदु इ दो वा अह जिणिदो वा ॥३२२।। अर्य-जिस जीव के जिस जन्म अथवा मरण को जिस देश मे जिस वान मे जिस कारण से होते हुए जिनेन्द्र भगवान ने नियत रूप मे जाना है उस जाव के उस जन्म अथवा मरण के उस देश मे उस काल मे उस कारण से होने को इन्द्र अथवा जिनेन्द्र कोन टाल सकता है ? आगे इस पर विचार किया जाता है। ___ माना कि केवलज्ञान द्वारा पदार्थों को जानने की यही प्रक्रिया है, परन्तु विचारणीय बात यह है कि अल्पज्ञता को
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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