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________________ २४७ योग्यता के अभाव में किसी वस्तु को अन्य कोई वस्तु कार्यरूप परिणत नहीं करा सकती है। यह बात पूर्व मे बतलायी जा चुकी है तथा कार्यरूप परिणति होना तो उपादान का ही कार्य है और उपादान की उस कार्यरूप परिणति मे प्रेरणारूप सहायता देना प्रेरक निमित्त का कार्य है। यही कारण है कि लोक मे और आगम मे जहाँ उपादान का कार्य चलना, बनना, पढना आदि के रूप में माना गया है वहाँ उसकी सहायता के रूप मे ही निमित्त का कार्य, चलाना, बनाना, पढाना आदि माना किया गया है । अव यदि चलाना, बनाना, पढाना आदि रूप क्रिया प्रेरणारूप है तो वह प्रेरक निमित्त का कार्य है और यदि उदासीनता रूप है तो वह उदासीन निमित्त का कार्य है लेकिन दोनो ही निमित्त कार्यरूप परिणति के प्रति उपादान मे सक्षमता आने के लिए सहायक होते है। निमित्त को जो बलाधायक कहा जाता है वह इसी रूप मे कहा जाता है । अर्थात् निमित्त कार्यरूप परिणत तो नही होता, फिर भी उपादान मे कार्य रूप परिणत होने की योग्यता रहते हुए भी वह जो कार्य रूप परिणत नही हो पा रहा है वह उसकी अक्षमता है उस अक्षमता का विनाश तदनुकूल निमित्तो की सहायता से ही होता है । आचार्य विद्यानन्दी के द्वारा अष्टसहस्री मे लिखित "तद सामर्थ्य म खन्ड यकचिकर कि महकारी कारण स्यात्" वचन का यही अभिप्राय है जिसका अर्थ यह है कि सहकारी कारण ( निमित्त कारण ) उपादान कारण की कार्योत्पत्ति की योग्यता रहते हुए भी कार्योत्पत्ति न हो सकने रूप अक्षमता का यदि खण्डन नही करता है तो वह सहकारी कारण (निमित्तकारण ) कहा जा सकता है क्या?
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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