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________________ २३६ परिणमन (कार्योत्पत्ति) उसको अपनी स्वभाव भूतयोग्यता के अभाव मे नही होता है अर्थात् कार्य जिस प्रकार स्वप्रत्यय और स्वपप्ररत्यय होते है उस प्रकारपर प्रत्यय नही होते है । इस प्रकार उपर्युक्त आगम प्रमाणो के आधार पर प० फूलचन्द्र जी के जैनतत्त्वमीमासा के विषय प्रवेश' प्रकरण मे पृष्ठ १५-१६ पर निर्दिष्ट उपर्युक्त कथन से सहमत होते हुए भी अर्थात् प्रत्येक वस्तु मे स्वभावभूत कार्योत्पत्ति की योग्यता का अभाव रहने पर अन्य द्वारा कार्योत्पत्ति की असम्भवता को स्वीकार करते हुए भी मैं यह कहना चाहता हूँ कि ऐसा एकात नियम नही है कि प्रत्येक वस्तु के सभी परिणमन पर की अपेक्षा रहित उस उस वस्तु मे पायी जाने वाली केवल स्वभावभूत योग्यता के आधार पर ही निप्पन्न हो जाया करते है क्योकि यह नियम सिफ पर (निमित्त) की अपेक्षा रहित केवल वस्तु की स्वकीय परिणमन स्वभावरूप उपादान शक्ति के आधार पर होने वाले षड्गुण हानिवृद्धि रूप स्वप्रत्यय परिणमनो मे ही लागू होता है इसके अतिरिक्त निमित्तो की सहायता पूर्वक उक्त उपादान शक्ति के आधार पर होने वाले जितने स्वपर प्रत्यय परिणमन प्रत्येक वस्तु मे उत्पन्न होते है उनमे उक्त नियम उक्त प्रकार रूप मे लागू नही होता है। यही कारण है कि समयसार मे ही पुद्गल के कर्मरूप परिणमन मे जीव की क्रोधादिभावरूप वैभाविक परिणति को तथा जीव की क्रोधादिभावरूप वैभाविक परिणति मे पुद्गल की कर्मरूप परिणति को निमित्त रूप से हेतु स्वीकार किया गया है । यथा जीवपरिणामहेदु कम्मत्तं पुगाला परिणमति । पुग्गलकम्मणिमित्त तहेव जीवो वि परिणमइ ॥८६॥
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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