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________________ २३८ अर्थात् जिस जीव मे क्रोधादिविभाव रूप परिणमन करने की निजी योग्यता नही है उसे उस रूप परिणमन कराने की सामर्थ्य पुद्गल के परिणमन क्रोध ( द्रव्य क्रोध ) मे नही है । " आचार्य अमृतचन्द्र ने भी "स्थितेत्यविघ्ना खलु पुद्गलस्य स्वभावभूता परिणामशक्ति पद्याश द्वारा पुद्गल की स्वभाव भूत परिणाम शक्ति का और “स्थितेति जीवस्य निरन्तराया स्वभावभूता परिणाम शक्ति" पद्याश द्वारा जीव की स्वभावभूत परिणाम शक्ति का वही पर उल्लिखित गाथाशो के व्याख्यान के अवसर पर समर्थन किया है । स्वामी समन्तभद्र ने भी स्वयभूस्तोत्र मे प्रत्येक वस्तु मे स्वभावभूत परिणमन शक्ति का सद्भाव स्वीकार किया है । यथा अलघ्पशक्तिर्भवितव्य तेय हेतुद्वयाविष्कृत कार्यलगा । अनीश्वरो जन्तु र हक्रियार्त्तः सहत्य कार्येष्विति साध्ववादीः ॥ ३३॥ अथ - हेतुद्वय अर्थात् अन्तरग (अनित्य उपादान) और वहिरग (निमित्त ) दोनो कारणो के आधार पर निष्पन्न होने वाला कार्य जिसका अनुमापक होता है - ऐसो भवितव्यता अर्थात् वस्तु की स्वभावभूत योग्यता ( नित्य उपादान शक्ति) अघ्य शक्ति है अर्थात् वस्तु मे कार्योत्पत्ति सम्बन्धी स्वभावभूत योग्यता के अभाव मे कार्योत्पत्ति सम्भव नही है अत कार्योत्पत्ति मे असमर्थ होता हुआ भी ससारी, प्राणी व्यर्थ ही कार्य कर्त्तव्य के अहकार से पीडित हो रहा है - हे भगवन् आपने यह ठीक ही कहा है । इन उद्धरणो से यह निष्कर्ष सहज ही निकल आता है कि प्रत्येक वस्तु मे स्वप्रत्यय अथवा स्वपरप्रत्यय कोई भी
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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