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की उत्पत्ति के प्रति कुम्भकार की तरह तन्तुवाय को तथा पट की उत्पत्ति मे तन्तुवाय की तरह कुम्भकार को भी कारण मानने का उनके मत से प्रसङ्ग उपस्थित हो जायगा । इसलिए यदि वे घट की उत्पत्ति तन्तुवाय के अभाव मे और पट की उत्पत्ति कुम्भकार के अभाव मे देखी जाने के कारण घट की उत्पत्ति मे तन्तुवाय की और पट की उत्पत्ति मे कुम्भकार की कारणता का निषेध करने के लिए अन्वयव्यतिरेक के इस सिद्धान्त को मान्यता देते हैं कि वही भावात्मक पदार्थ उस कार्य के प्रति कारण होता है जिसका जिसके साथ अन्वयव्यतिरेक पाया जाता है तो फिर इसी प्रकार अभावात्मक पदार्थों का भी विवक्षित कार्य के साथ कार्यकारणभाव निश्चित करने के लिये अन्वयव्यतिरेक के उक्त सिद्धान्त को मानने में भी उन्हे क्या आपत्ति रह जाती है ?
इस प्रकार भावात्मक पदार्थों के समान अन्वयव्यतिरेक के आधार पर ही अभावात्मक पदार्थों की कार्य के प्रति कारणता स्वीकृत हो जाने पर उसकी (अन्वयव्यतिरेक की) अविद्यमानता के सवव ही खरविषाण और आकाशकुसुम को कार्य के प्रति कारण मानने का प्रसंग उपस्थित नही हो सकता है | आगम भी इस बात का विरोधी नही है कि जिस जीव मे जब तक ज्ञानावरणादि उक्त कर्मो का क्षय नही हो जाता है तब तक उसमे केवलज्ञान प्रगट नही होता है और जिस जोव मे जब ज्ञानावरणादि कर्मों का क्षय हो जाता है तो उसी समय उसमे केवलज्ञान प्रगट हो जाता है । इस प्रकार ज्ञानावरणादि कर्मों के क्षय का केवलज्ञान की प्रगटता के साथ जब अन्वयव्यतिरेक विद्यमान है तो केवल ज्ञानरूप कार्य के प्रति ज्ञानावरणादि