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________________ २३० आकाश की कुसुम रहित स्थिति के अलावा और क्या हो सकते हैं ? इस तरह इस कथन से यह निष्कर्ष सहज हो निकल आता है कि केवल भावात्मक पदार्थों को कार्योत्पत्ति में कारण मानने पर भी उक्त आपत्ति का निराकरण नही हो सकता है, क्योकि भावात्मक पदार्थों को कार्योत्पत्ति मे कारण मानने पर भी यदि यह प्रश्न पण्डित जी के समक्ष प्रस्तुत किया जाय कि "इस तरह से भावान्तर स्वभाव स्पसरविपाण और आकागकुसुम को भी कार्य के प्रति कारणता की प्रसक्ति हो जायगी" तो फिर उनके पास क्या समाधान है ? दूसरी बात यह है कि अभाव में भी जो कारणता का निपेव किया जाता है वह निपेव अभाव के अमत्तात्मक होने के सवव नही किया जाता है किन्तु वहा पर भी उक्त निषेध भाव पदार्थ की तरह कार्य के साथ अन्वय-व्यतिरेक घटित न होने के आधार पर ही किया जाता है। अर्थात् वस्तु चाहे भावात्मक हो या चाहे अभावात्मक हो वह तव तक कार्य के प्रति कारण नहीं मानी जा सकती है जब तक कार्य के साथ उसका अन्वय-व्यतिरेक घटित नही होता है और यदि कार्य के साथ भावात्मक वस्तु के समान अभावात्मक वस्तु का भी अन्वय-व्यतिरेक घटित हो जाय, जैसा कि जीव की केवलज्ञान पर्याय और ज्ञानावरणादि कर्मों के क्षय के मध्य घटित होता है. तो इस हालत मे उसे (अभाव को) भी जैनदर्शन की मान्यता के अनुसार कार्य के प्रति कारण मानना अयुक्त नही है । मैं पण्डित फूलचन्द्र जी से यह पूछना चाहूँगा कि वे क्या अन्वय-व्यतिरेक के अभाव मे भी केवल भावात्मकता के आधार पर किसी भी भावात्मक वस्तु को किसी भी कार्य के प्रति कारण मानने के लिये तैयार हैं ? यदि ऐसा है तो फिर घट
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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