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________________ १६६ है व चतुर्दश गुणस्थान मे जहा आत्म स्वभाव की पूर्णता के साथ योग प्रवृत्ति का पूर्णत अभाव भी हो चुका है-अघाती कर्मो और नोकर्मों का बद्धतारूप सयोग जो जीव को ससारी बनाये हुए है इन सव को या तो कथचित् मानना होगा अथवा इनके आधार पर सयोग, आधाराधेयभाव व निमित्तनैमित्तिकभाव आदि नयाश्रित सम्बन्धो को भी कथचित् सद्भूत ही मानना होगा । इनमे से कौनसी मान्यता सत्य है इसका निर्णय पाठक स्वय कर सकते हैं इस विषय मे अब अधिक विवेचन की आवश्यकता नही रह गयो है । ऊपर उद्धृत प० फूलचन्द्र जी के कथन मे जो यह लिखा है कि "जो जिसका वास्तविक आधार होता है वह उसका कभी भी त्याग नही करता। इस सिद्धान्त के अनुसार यदि कटोरी घी का वास्तविक आधार है तो उसे कटोरी को कभी नही छोडना चाहिये परन्तु कटोरी को ओधा करने पर वह कटोरी को छोड ही देता है। इससे मालूम पडता है कि कटोरी घी का वास्तविक आधार नही है उसका वास्तविक आधार तो घी ही है क्योकि वह उसे कभी नही छोडता।" प० जी के इस कथन पर मैं यह कहना चाहता हूं कि चूकि कटोरी घी का वास्तविक आधार है इसलिये ही कटोरी को ओधा करने पर घी उसे छोड देता है। लेकिन प० जी के मतानुसार यदि कटोरी घी का वास्तविक आधार नही है तो कटोरी को सीधा रखने पर भी उसमे से घी गिर क्यो नही जाता है ? अथवा कटोरी को ओधा करने पर वह घी गिर क्यो जाता है ? जबकि कटोरी को सीधा रखने पर वह नही गिरता है । प० फूलचन्द्र जी के पास इस प्रश्न का कोई युक्ति संगत समाधान नही है क्योकि वे कटोरी और घी मे विद्यमान
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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