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१७० आधाराधेयभाव को कल्पित ही मानते हैं। आगम के अनुसार तो उसका समाधान यह है कि कि कटोरी घी का वास्तविक आधार है इसलिये उसे जब तक कटोरी का सहारा मिल रहा है तब तक वह नही गिरता और जब उसे कटोरी का सहारा नही मिलता तव वह गिर जाता है ।
घी का घी के साथ जो आधाराधेयभाव है वह भी वास्तविक है और घी का कटोरी के साथ जो आधाराधेयभाव है वह भी वास्तविक है तो इन दोनो प्रकार के आधाराधेयभावो मे फिर अन्तर ही क्या रह जाता है ?यदि कोई ऐसा प्रश्न करे तो इसका समाधान यह है कि आधाराधेयभाव तो दोनो ही वास्तविक है परन्तु दोनो मे अन्तर यह है कि घी का घी के साथ जो आधाराधेयभाव है वह स्वाथित अर्थात् तादात्म्य को लिये हुए है और वह स्थायी है जब कि घी का कटोरी के साथ जो आधाराधेयभाव है वह पराश्रित अर्थात् पदार्थद्वयसयोगजन्य है और वह स्थायी भी नही है अर्थात् नण्ट होने वाला है। इस तरह यह निर्णीत हो जाता है कि जिस प्रकार घी का घी के साथ तादात्म्य सम्वन्ध के आधार पर निर्मित आधाराधेयभाव वास्तविक है उसी प्रकार घी का कटोरी के साथ सयोग सम्बन्ध के आधार पर निर्मित आधाराधेयभाव भी वास्तविक ही है गधे के सीग की तरह कल्पित नही है।
दूसरी बात यह है कि प० फूलचन्द्र जी को "जो जिसका वास्तविक आधार है वह उसका कभी त्याग नही करता" यह सिद्धान्त यदि मान्य है तो फिर आकाश द्रव्य भी अपने से भिन्न अन्य सभी वस्तुओ का वास्तविक आधार सिद्ध हो जाता है क्योकि विश्व की कोई भी वस्तु कभी आकाश को नही छोडती है। लेकिन इस तरह प० जी द्वारा आकाश को विश्व की सभी