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________________ १६५ जूता को दाये पैर में और दायें पैर के जूता को बाये पैर मे कदाचित् पहिन लेता है तो ऐसा करने पर एक तो उस व्यक्ति को अपने दोनो पैरो मे अटपटापन मालूम होगा, दूसरे दोनो ही जूते उस-उस पैर मे काटने लगेगे और तीसरे देखने वाले लोग उसे मूर्ख या पागल कहने लगेगे। यह भी बात है कि प्रत्येक प्राणी के जीवन मे दो आदि वस्तुओ के सहारे से निष्पन्न सयोग, आधाराधेयभाव और निमित्त नैमित्तिकभाव आदि सम्बन्धो की आवश्यकता सदा ही बनी रहतो है क्योकि उनकी सभी जीवन प्रवृत्तियाँ उक्त सम्बन्धो के आधार पर ही चला करती हैं । इसलिये इस विषय मे यदि उदाहरणो का तांता बाँधा जाय तो उसका कही अन्त नही होगा, फिर भी कुछ उदाहरणो द्वारा मै यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि उक्त सम्बन्ध अज्ञानी जीवो को कल्पनामात्र न होकर वास्तविक ही है। जैसे प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन के सरक्षण एव क्षुधा जन्य कष्ट के निवारण के लिए बुद्धिपूर्वक भोजन मे प्रवृत्ति करता है, भोजन थाली आदि आधारभूत वस्तु मे रखकर ही किया जाता है, थाली आदि की स्वच्छता पर भी भोजन करने वाले व्यक्ति का ध्यान रहा करता है, विवेकीजन भोजन की शुद्धि-अशुद्धि का विचार कर ही भोजन किया करते है और इस तरह वे अशुद्धि पैदा करने वाले निमित्तो से भोजन का बचाव करना तथा शुद्धि पैदा करने वाले निमित्तो को जुटाना आदि प्रवृत्तियो को अपने परम कर्तव्यो मे समाविष्ट कर लिया करते है । रसोई बनाने वाला व्यक्ति भोजन की प्रक्रिया मे आटे को परात मे बदिपर्वक रखकर दी गदता है टाल तथा चावल
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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