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________________ १६४ वास्तविकता (सद्भूतता) को समझता हुआ कोई व्यक्ति यदि घी को कटोरी मे रखता है तो उस व्यक्ति की इस चेष्टा को लोक मे मिथ्या नही माना जाता है। परन्तु वही या अन्य व्यक्ति 'कटोरी तो घी का वास्तविक आधार नही है कल्पित आधार है उसका वास्तविक आधार तो घी ही है" ऐसा समझकर कटोरी और घो के आधाराधेय सम्बन्ध की उपेक्षा करके यदि छोटी कटोरी मे अधिक घी रखने की चेष्टा करने लगे या घी से भरी हई कटोरी को ओधा करदे तो ऐसे व्यक्ति को भले ही वह अपने को आध्यात्मिक मान रहा हो-लोक मे पागल या मूर्ख ही मान जायगा। इतना ही नही, उक्त प्रकार की चेष्टा करता हुआ वह व्यक्ति घी को कटोरी से बाहर भूमि पर गिरता हुआ देखकर स्वय भी अपनी समझ और चेष्टा पर हंसे विना नही रहेगा। इसी प्रकार जिस कटोरी मे घी रखने से वह विकृत हो सकता है उसमे यदि कोई व्यक्ति घी रखने की चेष्टा करे तो उसे भी लोग अज्ञानी ही कहेगे। इस प्रकरण मे दूसरा उदाहरण यह दिया जा सकता है कि टोपी शिर पर ही रक्खो जाती है और जूता पेर मे पहिना जाता है। अब यदि कोई व्यक्ति टोगी ओर शिर तया जुता और पैर मे विद्यमान सम्बन्ध को कल्पनामात्र का विषय मानकर जता को शिर पर रख ले और टोपी को पर मे पहिन ले तो ऐसे व्यक्ति को लोक मे निर्विवादरूप से पागल ही कहा जायगा, क्योकि लोक मे टोपी से शिर की ही और टोपी से ही शिर की तथा जूता से पैर की ही और जता से ही पैर की शोभा एव सुरक्षा का सम्बन्ध जुडा हुआ है। इतना ही नही, दाये पैर के जूता का सम्बन्ध दाये पैर से और बाये पैर के जूता का सबध वाये पैर से जुड़ा हुआ होने पर भी यदि कोई व्यक्ति गये पैर के
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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