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________________ नोक में देया जाता है कि हत्यार जव दानयोग के विमानम साथ की गतिमान हो जाना है । जैसे गंजन के गाव कुवारी सेऐजन के र माया रेप नागभव नहीं है। यह बा स्वन्तुओं मे जो भी होगी या नहीं होगा दिया करने लगे। इस प्रकार यद्यपि द्रव्य के गुण का दूसरे निसान के अनुसार आत्मा और होने पर भी हो वदताम् योग आत्मा परिणति कर्म मे होगी, परन्तु और गर्म की अपनी जिस प्रकार एंजन की गति रेलगाटी में दबी की गति में सहायक होती है उसी प्रार्म को उत्प परिणति आत्मा को गमार रूप परिणति मे महावर न्य कारण होती है । होगी अपनी अपनी पर ए करु इस प्रकार आत्मा को समान रूप परिपति कर्मनिमित्तक होने पर भी चूंकि आत्मा की निजी परिणति है इसलिये यदि इस आधार पर उसे वास्तविक माना जाय और वद्धता कि कर्म और आत्मा दो द्रव्यगत है इसलिये उसे अवास्तविक (उपनरित) माना जाय तो उसमें किमी को कोई आपत्ति नही हो गक्ती है । परन्तु इन तरह से जीव को ससार अवस्था को वास्तविक ( सद्भावात्मक ) और बद्धता को अवास्तविक
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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