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________________ १४० द्रव्यों को अर्थ पर्यायें और व्यंजनपर्याय सभी द्रव्य परिणमन स्वभाव वाले हैं-यह वात पूर्व मे बतलायी जा चुकी है यहा पर मैं यह बतलाना चाहता हूँ कि द्रव्यो के परिणमन अर्थपर्यायो और व्यजनपर्यायो के रूप मे हुआ करते है । द्रव्यो की स्वभाव पर्यायो या गुणपर्यायो को आगम मे अर्थपर्याय नाम दिया गया है और उनकी द्रव्यपर्यायो को व्यजनपर्याय नाम दिया गया है । यथा-- "गरणपर्यायाणामिह केचिन्नामान्तर वदन्ति बुधाः । अर्थो गुरग इति वा स्यादेकार्थादर्थपर्यया इति च ।। ६२॥ अपि चोहिष्टाना मिह देशाशद्रव्य पर्ययाणां हि । व्यजन पर्याया इति केचिन्नामान्तर वदन्ति वुधा ।। ६३ ।। (पचाध्यायी अध्याय १) अर्थ-विद्वानो ने गुणपर्यायो का ही अपरनाम अथपयाय कहा है और द्रव्यपर्यायो का ही अपरनाम व्यजनपर्याय कहा है। क्योकि अर्थ तथा गुण एक से अर्थ के वोधक शब्द हैं तथा देशाशो पर ( द्रव्य के अशो) को ही द्रव्यपर्याय कहते है। इस कथन से यह भलीभाति सिद्ध हो जाता है कि स्वभावपर्यायें, गुणपर्याय और अर्थपर्याय एक हैं और द्रव्यपर्याय व व्यजनपर्याये एक हैं। अर्थपर्यायो का विवेचन पूर्व कथनानुसार स्वभावपर्याय या गुणपर्याये दो प्रकार को होती हैं-एक स्वप्रत्यय और दूसरी स्वपरप्रत्यय । इस तरह स्वभाव अथवा गुणपर्यायाओ से अभिन्न होने के कारण
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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