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के सभी द्रव्य अनादिकाल से यद्यपि बद्धस्पृष्ट स्थिति को धारण करते आये है परन्तु आगे चलकर उनमे से बहत से जीव पूरुपार्थ द्वारा अपनी बद्ध स्थिति को समाप्त कर अबद्ध स्थिति को प्राप्त कर चुके है तथा बहुत से जीवो मे अपनी बद्ध स्थिति को समाप्त कर अवद्ध स्थिति को प्राप्त करने की यह प्रक्रिया अभी भी चालू है और अनन्त काल तक वरावर चाल रहेगी। जीवो मे बहुत से जीव ऐसे भो हैं, जिनमे अपनो अनादि कालोन बद्धस्थिति को समाप्त करने को योग्यता रहते हुये भी वे कभी अबद्ध स्थिति को प्राप्त नही होगे तथा जिन जोवो मे अपनी अनादि कालोन बद्धस्थिति को समाप्त करने की योग्यता ही नही है वे भी हमेशा वद्धस्थिति मे रहेगे । सभी पुद्गल द्रव्यो मे व्यवस्था यह है कि अबद्धस्थिति को प्राप्त पूद्गल कालान्तर मे बद्धस्थिति को प्राप्त हो जाता है और बद्धस्थिति प्राप्त पुद्गल कालान्तर मे अबद्धस्थिति को भी प्राप्त हो जाता है। कोई भी जीव जो एक बार अपनी बद्धस्थिति को समाप्त कर अबद्धस्थिति को प्राप्त हो जाता है पुन कभी बद्धस्थिति को प्राप्त नहीं होता ।
इस प्रकार यह बात निश्चित हो जाती है कि विश्व मे जितने पदार्थ है वे सब बद्धस्पृष्ट और अवद्धस्पृष्ट इस तरह दो वर्गों में विभक्त है । इन पदार्थो मे ययासम्भव पायी जाने वाली बद्धता और स्पृष्टता दोनो ही पृथक्-पृथक् दो आदि पदार्थो की सयोग विशेष रूप अवस्थाये है। स्पृष्टता तो सव पदार्थो मे एक दूसरे पदार्थों के साथ यथायोग्य रूप मे सदा बनी रहती है परन्तु बद्धता केवल जीव और पुद्गल नाम के पदार्यो मे ही सम्भव हुआ करती है । जीवो की बद्धता केवल पुद्गल द्रव्यो के साथ सम्भव है परन्तु पुद्गल द्रव्यो की बद्धता यथायोग्य जीवो तथा पुद्गलो दोनो के साथ सम्भव है।