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को दृष्टि मे होने वाली बन्ध प्रक्रिया इससे भिन्न है कारण कि बहा पुद्गल पुद्गल के साथ बद्ध न होकर आत्मा पुद्गल के साथ अथवा पुद्गल आत्मा के साथ बद्ध होता है। इसी तरह अध्यात्म विज्ञान की दृष्टि से बद्ध आत्मा और पुद्गल के पृथक्करण (भेद) की प्रक्रिया भी बद्ध पुद्गलो के पृथक्करण (भेद) की प्रक्रिया से भिन्न जानना चाहिये। गोम्मटसार कर्मकाण्ड आदि ग्रन्थो मे इसका ही विवेचन किया गया है तथा बद्ध होने व पृथक् होने पर जो आत्मा और पुद्गल की अवस्थाये (परिणतियाँ ) बनती है उनका विवेचन गोम्मटसार जीवकाण्ड आदि ग्रन्थो मे किया गया है ।
अध्यात्म विज्ञान की दृष्टि से होने वाले बन्ध मे आत्मा कार्मणवर्गणा रूप और नोकर्मवर्गणा रूप पुद्गलो से अथवा काणिर्गवणा रूप और नोकर्मवर्गणा रूप पुद्गल आत्मा से वद्ध होते हैं यह नियम है । काणिवर्गणारूप पुद्गलों का अर्थ है ज्ञानावरणादि कर्म रूप से परिणत होने की योग्यता रखने वाले पुद्गल और नोकर्म वर्गणारूप पुद्गलो का अर्थ है शरीरादि नोकर्म रूप परिणत होने की योग्यता रखने वाले पुद्गल । यह भी नियम है कि कार्माणवर्गणारूप और नोकर्मवर्गणारूप पुद्गलो का क्रमश कर्मरूप और नोकर्मरूप परिणमन आत्मा के प्रतिनियत परिणमन का निमित्त मिलने पर ही होता है और जव काणिवर्गणारूप पुद्गल कर्मरूप तथा नोकर्मवर्गणारूप पुद्गल नोकर्म परिणत हो जाते हैं तो यथाकाल होने वाले उनके प्रतिनियत परिणमन आत्मा के प्रतिनियत परिणमन के निमित्त होते है । जैसा कि समयसार गाथा ८६ मे कहा गया है
"जीवपरिणामहेदु कम्मत्त पुग्गला परिणमति । पुग्गल कम्मणिमित्त तहेव जीवो वि परिणसइ ॥"