SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 170
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निर्माण प्रामा भेट और गालात में होता है ( अर्थात पुद्गत सन्धों की गणन क्रिया अगाय पुद्गल के निर्माण में कारण है और अगु 17, पुद्गलो का महान ( गठन ) रकन्ध त्प प्रगलो ने निर्माण में कारण है लेकिन यहां तना विशेष समलना चाहिये निकोपरगन सन्धी गेटन क्रिया (भद) के आधार पर छोटे मान्यो और छोटे यन्त्रों ने नगठन किया (गलात) के आधार पर बंटे कन्यो का भी निर्माण होता है।) अग्गुओं की उत्पत्ति भेद से होती है गवान में नहीं होती। चाप समाधो की उत्पत्ति भेद और नधात दोनो ने आधार पर होती है। वन्ध (गडात) का कारण गुद्गलो में विद्यमान स्निग्धता और रक्षता नाम के गुण है। लेकिन स्निग्यता और रक्षना के जघन्य अग बन्च कारण नहीं होते हैं और स्निग्धता अथवा नक्षता के ममान अश वाले पुद्गल यदि सहम अनि स्निग्ध-स्निग्य अथवा रुक्ष-रक्ष भी हो तो भी वन्य नहीं होता है। उन तरह स्निग्ध-स्निग्ध अयवा रक्ष-रक्ष या स्निग्ध क्ष पूगलो का यदि वन्ध हो रहा हो तो वहां एक स्निग्य से दूसरे स्निग्ध के, एक मक्ष से दूसरे रुक्ष के तथा स्निग्ध मे लक्ष के अथवा असे ग्निग्ध के दो गुण अधिक होना अधि आवश्यक है। इस तरह बन्ध के अवमर पर जिमके दो गुण अधिक होंगे उस रूप नारा पुद्गल परिणत हो जाया करता है। यहां इतना विशेष अवश्य ममलना चाहिये कि बन्ध होने पर दोनो किसी एक रूप न होकर तीसरो अवस्था को हो प्राप्त हो जाते हैं । इस विषय का स्पष्टीकरण वैज्ञानिक दृष्टि की अधिकाधिक अपेक्षा रखता है। आध्यात्मिक दृष्टि से वन्ध और उसके अभाव का विवेचनपुद्गल स्कन्धो अथवा पुद्गलारणुओ के निर्माण को वस्तु-विज्ञान की दृष्टि से उपर्युक्त प्रक्रिया है। अध्यात्म विज्ञान
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy