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इस प्रकार दर्पण और दीपक दोनो के अपने-अपने परसापेक्ष परिणमन मे स्वभाव और उसके परिणमनरूप कार्य का भेद होने पर भी कार्यकारणभावव्यवस्था की दृष्टि से दोनो मे समानता पायी जाती है। अर्थात् जिस प्रकार पहले उपादानोपादेयभाव और निमित्तनैमित्तिकभाव के आधार पर कार्यकारणभावव्यवस्था का प्रतिपादन दर्पण मे किया गया है उसी प्रकार उपादानोपादेयभाव और निमित्तनैमित्तिकभाव के आधार पर कार्यकारणभाव व्यवस्था का प्रतिपादन दीपक मे भी किया जा सकता है। यानि दर्पण की तरह दीपक के विषय मे भी यह कहा जा सकता है कि दोपक के परपदार्थप्रकाशक स्वभाव के परपदार्थ प्रकाशन रूप परिणमन मे दीपक अथवा दीपक का परपदार्थ प्रकाशक स्वभाव उपादान कर्ता है और अपने अपने रूप से प्रकाशित होने वाले परपदार्थ अथवा उनका अपना अपना उस समय का परिणमन निमित्त कर्ता है।
देखने में आता है कि दीपक के समक्ष जब घट आता है तो दीपक घट का ही प्रकाशन करता है और उससे घट ही प्रकाशित होता है उस समय दीपक के समक्ष न आने वाले अन्य पदार्थो का प्रकाशन न तो दीपक करता है और न वे पदार्थ उस समय प्रकाशित ही होते हैं। इसी प्रकार दीपक के समक्ष घट के आने पर घट का प्रकाशन होते हुए भी भिन्नभिन्न समय मे घट की प्रतिनियत विविध कारणो के आधार पर जैसी-जैसी अवस्थायें बदलती रहती हैं वैसा-वैसा बदलाव दीपक के प्रकाशकपने रूप स्वभाव मे और घट के प्रकाशितपने रूप स्वभाव मे भी होता जाता है । यदि इस अनुभवपूर्ण स्थिति को नही स्वीकार किया जाय तो घट के प्रकाशन के समय अन्य पदार्थो का और घट की एक अवस्था के प्रकाशन के