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________________ ७८ समय उसकी अन्य अवस्थाओ का भी प्रकाशन होना चाहिये लेकिन चूकि ऐसा प्रकाशन होता नहीं है अत यही माना जायगा कि घटादि पदार्थ अथवा उनके भिन्न-भिन्न समयो मे होने वाले अपने-अपने परिणमन दीपक के प्रकाशक स्वभाव के प्रतिनियत परिणमन मे निमित्त होते है। दीपक के परपदार्थ प्रकाशक स्वभाव की यही परसापेक्षता है । दीपक के परपदार्थ प्रकाशक स्वभाव के इस प्रकार के परिणमन की यह परसापेक्षता दर्पण की तरह ही दो प्रकार को होती है। अर्थात् उसका एक प्रकार का परसापेक्ष परिणमन तो ऐसा होता है जिसमे परपदार्थ उदासीन रूप से निमित्त होता है और दूसरे प्रकार का परमापेक्ष परिणमन ऐसा होता है जिसमे प्रेरकता के आधार पर परपदार्थ निमित्त होते हैं। पहले प्रकार के परसापेक्ष परिणमन मे तो यह स्थिति रहती है कि दीपक के समक्ष जो घटादि पदार्थ अनायास आते रहते है उन्हे दीपक अनायास ही प्रकाशित करता है और वे पदार्थ अनायास ही प्रकाशित होते रहते हैं । दीपक के प्रकाशक स्वभाव की और उन पदार्थो के प्रकाशित होने रूप स्वभाव की उक्त परिणति मे कोई पदार्थ प्रेरक नही होता है, फिर भी यहा पर दीपक के प्रकाशक स्वभाव की परिणति मे दीपक उपादानोपादेयभाव से और घटादि पदार्थ निमित्तनैमित्तिकभाव से कारण होते हैं तथा इसी प्रकार घटादि पदार्थो के प्रकाशित होने रूप स्वभाव की परिणति में घटादि पदार्थ उपादानोपादेयभाव से और दीपक निमित्तनैमित्तिकभाव से कारण होते हैं। दूसरे प्रकार के परसापेक्ष परिणमन मे ऊपर बतलायी गयी पहले प्रकार की परमापेक्ष परिणमन की स्थिति से भिन्न
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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