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________________ और प्रतिनियत (स्व के अतिरिक्त दूसरी किसी भी वस्तु मे नही पाया जाने वाला) स्वरूप है। ये सभी वस्तुयें विश्व मे अनादिकाल से रहती आयी और अनन्तकाल तक रहने वाली है तथा इनमें से प्रत्येक वस्तु अपने आप मे तथा स्वरूप के साथ अखण्ड तथा अपने अस्तित्व मे पराश्रितता से रहित आत्मनिर्भरता को धारण किये हुए है। इतना ही नही, प्रत्येक वस्तु स्वत सिद्ध परिणमन स्वभाव वाली है अर्थात् प्रत्येक वस्तु मे परिणमित होने की स्वत सिद्ध योग्यता ( उपादान शक्ति ) विद्यमान है। परिणमन भी प्रत्येक वस्तु मे जव जैसा होता है वह उस-उस वस्तु के अपने-अपने स्वभाव की सीमा में ही हुआ करता है किसी भी वस्तु का कोई भी परिणमन उसके अपने स्वभाव के वाहर त्रिकाल मे कदापि नही होता है । इतना अवश्य है कि प्रत्येक वस्तु का कोई परिणमन तो स्वसापेक्षपरनिरपेक्षरूप मे और कोई परिणमन स्वपरसापेक्षरूप मे हुआ करता है । अर्थात् यद्यपि कोई परिणमन परनिरपेक्षरूप मे और कोई परिणमन परसापेक्षरूप मे हुआ करता है लेकिन स्वसापेक्षता दोनो ही प्रकार के परिणमनो मे रहा करती है । परिणमनो की यह स्वसापेक्षता और परनिरपेक्षता तथा स्वपरसापेक्षता उस-उस चस्तु मे स्वय सिद्ध रूप मे ही विद्यमान है। इस प्रकार यह सब प्रत्येक वस्तु को स्वाभाविक स्थिति है इसमें विवाद करने की "स्वभावोऽतर्कगोचर" के न्याय के अनुसार कुछ भी गुजाइश नही है । इसके आगे यहा अब मैं उक्त दोनो स्वसापेक्षपरनिरपेक्ष तथा स्वपरसापेक्ष परिणमनो का आवश्यकतानुसार विशेष विवेचन करना उचित समझता ह। स्वसापेक्षपरनिरपेक्ष परिणमन के सम्बन्ध मे विवेचन स्वसापेक्षपरनिरपेक्ष परिणमन के सम्बन्ध मे मैं यह बतला चुका है कि विश्व के सभी पदार्थों के अगुरुलघुगुण के
SR No.010368
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Pandit
PublisherDigambar Jain Sanskruti Sevak Samaj
Publication Year1972
Total Pages421
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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