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समर्पण से शिवा के प्रति अपने प्रेम को स्थापित करती है। 'ध्रुवतारा जैनेन्द्र ने प्रेम और कर्तव्य का अजीब सा आदर्श प्रस्तुत किया है, प्रेयसी प्रेयस को उत्पन्न नहीं करती है, बल्कि स्वयं कष्टों को झेलती हुई उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है। वह स्पष्ट कहती है कि मैंने कितनी बार तुमसे कहा कि तुम उससे ज्यादा के लिए हो ।
पुरुष के जीवन में कुछ इच्छाएँ होती हैं। स्त्री उनको पूरा करने के लिए सहयोगिनी होती है। 'मुक्तिबोध में नीलिमा कहती है- 'आदमी सपने के लिए जीता है और औरत सपने के आदमी के लिए जीती है । 47 जयवर्धन की इला प्रत्येक क्षण जय के साथ रहती हुई भी राजनीतिक क्षेत्र में उसके साथ कदम मिलाकर नहीं चलती, वह जय के साथ रहती है, परन्तु आत्मा की तरह ही उसका बाहरी और सक्रिय रूप तो जय स्वयं होता है ।
मातृत्व
जैनेन्द्र ने स्त्री के मातृत्व रूप को भी बहुत अधिक महत्व प्रदान किया है। प्रेयसी होने के साथ ही साथ वह माता भी है। प्रत्येक दृष्टि से वह प्रेम, प्यार, त्याग और स्नेह की मूर्ति है। आधुनिक समय में आर्थिक परेशानियों के कारण माता घर से बाहर कमाने के लिए जाती है । इस प्रकार वह अपने मातृत्व के कर्तव्य को पूरा नहीं कर पाती । यही कारण है कि जैनेन्द्र स्त्री को घर से बाहर आर्थिक क्षेत्र में पुरुष की सहभागिनी के रूप में आना उचित नहीं समझते। उनकी दृष्टि में स्त्री की सार्थकता मातृत्व में है। मातृत्व दायित्व है । वह स्वतन्त्रता नहीं है। स्त्री निपट स्वच्छन्द रहना चाहती है, तो उसके मूल में यहीं
46 जैनेन्द्र कुमार - ध्रुवतारा, पृष्ठ- 94
47 जैनेन्द्र कुमार मुक्तिबोध, पृष्ठ - 93
48. मै नही चाहूँगा कि माता कमाने के लिए दफ्तर में जाय और धाय बच्चो को अपना दूध पिलाने के लिए आए।
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