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________________ प्रस्तुत किया। इसके पहले के लेखकों के समक्ष इस समस्या से उत्पन्न बुराइयाँ ही प्रमुख थीं। अतएव परिवर्तन की ठोस तथा क्रान्तिकारी भूमिका के स्थान पर इन्होंने सुधारवाद का मार्ग पकड़ा और विधवाओं को विधवा आश्रम तक पहुंचाया। इस प्रकार अबला नारी को समाज में सुरक्षित रखने की व्यवस्था अवश्य की लेकिन नारी स्वयं रूढिगत मान्यताओं के प्रति विद्रोह करती हुई नहीं दिखलायी पडी। जैनेन्द्र ‘परख' में इस समस्या के तह में गये और उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि यह समस्या सामाजिक ही नहीं वरन् वैयक्तिक स्तर पर भी अपना महत्व रखती है। उन्होंने वैधव्य की समस्या को मनोवैज्ञानिक प्रतिमानों पर परखा तथा उसके समाधान में न केवल सामाजिक बल्कि वैयक्तिक दृष्टिकोण को भी स्वीकृत किया। 'परख' में इस समस्या का बहुत कुछ रूप वैयक्तिक ही है। ‘परख' की कट्टों बाल विधवा है। पांच वर्ष की उम्र में ही उसका विवाह हुआ, तब वह अपने पति को जानती तक नहीं थी। इसके तुरन्त बाद उसके पति का देहान्त हो गया, जिसके कारण विधवा का अर्थ जानने के पहले ही कट्टो विधवा बन गयी। उसने अभी तक किसी से प्रेम नहीं किया। फलतः किशोरावस्था में वह जब अपने मास्टर जी के सम्पर्क में आती है तो उनसे प्रेम करने लगती है। सामाजिक रूढ़ि मान्यताओं के प्रति कट्टों का यह विद्रोह सराहनीय है और पाठकों की सहानुभूति भी लेखक के साथ-साथ उसे प्राप्त है। अन्ततः सत्यधन उसके साथ विश्वासघात करता है। तब प्रथम बार उसे अनुभव होता है कि वह विधवा हो गयी है। वैधव्य का अनुभव कट्टो रूढ़िगत मान्यताओं तथा सामाजिक संस्कारों से प्रभावित होकर नहीं कर सकी, लेकिन वैयक्तिक अनुभव के आधार पर उसे वैधव्य स्वीकार करना पड़ता है। अनुभव करने का यह ढंग [661
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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