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________________ सत्यता को लेकर उत्पन्न हुई है। उनके सम्बन्ध में यह कहना ठीक नहीं है कि उन्होंने समाज का विरोध किया है। समाज सत्य है, किन्तु समाज के साथ व्यक्ति की सच्चाई का निषेध नहीं किया जा सकता। समाज मनुष्य से ही है और मनुष्य की सार्थकता भी समाज में ही सम्भव है। ब्रह्मचर्य हमारे देश में मनुष्य जीवन को चार अवस्थाओं में विभाजित किया गया है, वे अवस्थायें ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास हैं। जीवन की प्रथम अवस्था को ब्रह्मचर्य कहा गया है। इस अवस्था में मानव केवल अपनी शिक्षा-दीक्षा ही नहीं प्राप्त करता है, बल्कि अपना सर्वांगीण विकास करता है। जैनेन्द्र की दृष्टि इससे अछूती न रह सकी, उन्होंने 'अनामस्वामी' में इसकी विस्तृत व्याख्या की है। उपन्यास के कथा पट एक बीतरागी किन्तु सामाजिक दृष्टिकोण के व्यक्ति 'अनामस्वामी' के आश्रम में बुने जाते हैं। सहज वातावरण ब्रह्मचर्य का प्रश्न उठाता है। अनाम दुनिया से भागने, समाज से अलग होने, अपने शरीर को कठोर दृढ़वादिता का शिकार बनाने आदि को ब्रह्मचर्य के आकर्षक नाम से पुकारने पर विश्वास नहीं रखता है। अनाम की दृष्टि में विवाह अनिष्ट नहीं हैं। ब्रह्मचर्य की सुरक्षा कानून से नहीं, विवाह के बन्धन से अधिक हो सकती है। कथाकार चिन्तन पूर्णता को ही ब्रह्मचर्य का लक्ष्य मानता है। शक्तिहीनता पथभ्रष्टता है, शक्तिहीन बनना ब्रह्मचर्य का चरितार्थ न मान लिया जाय, तथापि वैसे प्रयोग किए गए हैं। आदमी हठात् नपुसंक बन गया है, पर वहाँ पूर्णता नहीं है और पूर्णता ब्रह्मचर्य का लक्ष्य है। बन्द मठ में रखकर किसी की आत्मा को खोला नहीं जा सकता है।" अर्थात् अकेलेपन के 11. जैनेन्द्र कुमार - अनामस्वामी, पृष्ठ - 39 [39]
SR No.010364
Book TitleJainendra ke Katha Sahitya me Yuga Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjay Pratap Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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