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युग अपने वैभव के साथ आसीन होता है। वह एक आधार है, जिसके सहारे साहित्यकार युग से परिचित होता है। परिस्थितियाँ देश-काल में परिर्वतन उत्पन्न करती हैं। राष्ट्र की राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, आर्थिक दशाओं में एक अमूल्य परिर्वतन होता है, जिससे पुरानी परम्पराएँ विनष्ट होती हैं और उसके स्थान पर वर्तमान के अनुसार उपयोगी अनुपयोगी युगीन परिस्थितियाँ युग-पृष्ठभूमि बन जाती हैं। तत्कालीन जग-जीवन को जानने के लिए युगीन पृष्ठभूमि से परिचित होना नितान्त उपयोगी है। परिस्थितियाँ पृष्ठभूमि का प्राणतत्व होती हैं, उनके बदलने से युगान्त उपस्थित होता है और नवीन युग का आरम्भ होता है।
अतः साहित्यकार के लिए युग-पृष्ठभूमि का महत्वपूर्ण उपादान है, क्योंकि परिवर्तनशील जग-जीवन सामाजिक व्यवस्थाओं के बदलने से परिवर्तित हो जाया करता है। कोई भी साहित्य समीक्षक पृष्ठभूमि के बिना साहित्य और साहित्यकार का मूल्यांकन नहीं कर सकता है। पृष्ठभूमि ने व्यक्ति एवं समूह के पारस्परिक सम्पर्क सम्बन्धों को लेकर अनेक युगान्तकारी प्रश्नों से आज की युगचेतना को प्रभावित किया है, जिसके कारण अनेक मौलिक उद्भावनायें एवं समस्याओं का जन्म हुआ है। पृष्ठभूमि के बिना युग-बोध की कल्पना नहीं की जा सकती है। युग बोध सात्यिकार की प्राण शक्ति है तथा उसके अभाव में न तो उसका कोई अस्तित्व ही है और न वह साहित्य सर्जना ही कर सकता है। किसी भी युग की पृष्ठभूमि उस युग की जन्मदात्री हुआ करती है, परन्तु आश्चर्य की बात यह है कि युग पृष्ठभूमि में समाया होता है और पृष्ठभूमि युग में। साहित्य संगीत तथा ललित कलाओं का मूल्यांकन युगीन पृष्ठभूमि के बिना नहीं किया जा सकता है। पृष्ठभूमि युग की जीती-जागती झाँकी प्रस्तुत करती है, जिससे युग विशेष के यथार्थ स्वरूप का अध्ययन किया जा सकता है। किसी साहित्यकार, वैज्ञानिक, संगीतकार, एवं दार्शनिक के निर्माण मे युगीन
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