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में स्वीकार की हुई विधियों, प्रथाओं तथा प्रणालियों का अनुसरण तो होता ही है, साथ ही पूर्वकाल से चली आती हुई विचारधाराओं की अभिव्यक्ति भी होती है। सामाजिक जीवन की समस्त बातें एवं व्यवहार परम्परा के क्षेत्र में आते हैं, जिनको पीढ़ियों से समाज ग्रहण करता चला आ रहा है। साहित्य जीवन के शाश्वत मूल्यों, आदर्शों, रीतियों, प्रथाओं, प्रणालियों एवं स्थापनाओं को अपने पूर्ववर्ती साहित्यकारों से उत्तराधिकार के रूप में प्राप्त करता है । साहित्य के क्षेत्र में इन्हें ही परम्परा नाम से जाना जाता है। इन परम्पराओं के निर्धारण में तत्कालीन साहित्यकार को कोई प्रयास नहीं करना पड़ता बल्कि वे स्वतः ही साहित्य में प्रचलित हो जाते हैं । साहित्य में इन बातों का वर्णन गतानुगतिक न्याय से चलता रहता है, उसके लिए किसी भी शास्त्रीय विधान की आवश्यकता नहीं होती। सफल से सफल साहित्यकार भी इसे अपने साहित्य में सर्वप्रथम स्थान देते हैं । परम्पराओं की परिवर्तनशीलता उनका अस्तित्व बनाये रखती है और स्थिरता पतन का कारण बनती है। टी० एस० इलियट के अनुसार
'परम्परा मूलतः रूढिवादी सैद्धान्तिक विश्वासों की मान्यता नहीं होती, अपितु परम्परा का निर्माण जीवन्त विश्वासो में होता है ।
मैथ्यू अर्नाल्ड ने कवि के तीन साधन स्वीकर किए हैं-भाव, भाषा एवं वस्तु । 10 साहित्य - क्षेत्र की समस्त मान्यताओं का आधार ही विश्वास और भ्रान्ति पर निर्मित है। मनुष्य अपने भावों एवं विचारों को शब्दों द्वारा प्रकट करता है । शब्द और ध्वनि संकेत मात्र हैं । ध्वनि से जिस वस्तु का बोध होता है, शब्द का उसके साथ किसी प्रकार का सम्बन्ध नहीं होता । शब्द द्वारा अर्थ कल्पित होता है । विभिन्न शब्दों
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TRADITION is not solely, or even primarily the maintenance of certain dagmatic beliefs, these beliefs here come to take their living form in the course of the formation of a tradition. (Selected Prose of T. S. ELIOT Edited by John Hayword, Page-20) जॉन लिबिग्सटन - कन्वेंशन एण्ड रिवोल्ट इन पोयट्री, पृष्ठ-10
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