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सुख - दुःख की अनुभूतियाँ चेतना की देन हैं, जिनकी उत्पत्ति बाह्य परिस्थितियों के माध्यम से हुआ करती है। साहित्यिक क्षेत्र में अनुभूतियों का अत्यधिक महत्व है । 'हिन्दी साहित्य कोश' में विचार व्यक्त किया गया है- साहित्य क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की अनुभूतियों का वर्णन हुआ है- इसमें काव्यानुभूति, रसानुभूति, भावनानुभूति, लौकिकानुभूति, विलक्षणानुभूति, रहस्यानुभूति, दिव्यानुभूति, प्रत्यज्ञानुभूति, समानानुभूति, सहानुभूति तथा सौन्दर्यानुभूति प्राप्त होती है । '
चेतना एक ऐसा साधन है जिसके कारण ही हम देखते, सुनते, समझते एवं अनेक विषयों पर चिन्तन करते है । श्री लक्ष्मीकान्त वर्मा ने अपने मत का प्रतिपादन निम्नांकित शब्दों में किया है
'चेतना का प्रवाह जीवन का द्योतक है। 'अहं' इस चेतना की अभिव्यक्ति है। एक ओर यदि चेतना जीवन के भार को वहन करती है, तो दूसरी ओर वह जीवन के प्रसंग में सक्रिय भाग लेती
सक्रिय भाग का अर्थ निष्क्रियता नहीं है और न ही उसका उद्देश्य यह है कि चेतना उर्ध्वमुखी हो, अर्न्तमुखी न हो।
चेतना और मानव चरित्र में मौलिक सम्बन्ध होता है तथा उसमें एक विशेष गुण है, जिसके माध्यम से सम्पूर्ण चरित्र संगठित रहता है और जीने की वास्तविक अभिव्यक्ति के साथ साथ उसके विभिन्न कार्य सम्पादित होते रहते हैं। डॉ० राम प्रसाद त्रिपाठी के शब्दों में -
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'किसी मनुष्य की चेतना और चरित्र केवल उसी की व्यक्तिगत सम्पत्ति नहीं होते, यह बहुत दिनों के सामाजिक प्रक्रम के परिणाम होते हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपने वंशानुक्रम को स्वयं प्रस्तुत करता है ।
हिन्दी साहित्य कोश,
श्री लक्ष्मीकान्त वर्मा
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भाग-1, संपादक - डॉ० धीरेन्द्र वर्मा, पृष्ठ - 27
नई कविता के प्रतिमान - 224
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