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उनकी युग चेतना का प्रतिफल है। उनके सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, दार्शनिक एवं रचना सम्बन्धी शिल्पगत प्रयोगों एवं अवधारणाओं का भी मूल्यांकन प्रस्तुत किया गया है। प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध से यदि जैनेन्द्र के कथा-साहित्य और उनकी युग चेतना का स्वरूप स्पष्ट हो सका, तो शोधकर्ता का प्रयास सार्थक होगा, इसी प्रत्याशा में यह शोध-प्रबन्ध विद्वज्जनों के सम्मुख प्रस्तुत है।
अजय प्रताप सिंह (अजय प्रताप सिंह)
दिनांक: 19.12.2002
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