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विस्तार से करता है। एक अन्य वकील मुंशी होशियार बहादुर के विषय में कथाकार पूरे ब्योरे देता हुआ लिखता है। मुंशी होशियार बहादुर जिले के नामी-निरामी वकील थे। आमदनी खूब थी। दबदबा (२) भी खूब था
व्यास, प्रत्यक्ष तथा इतिहास-शैली के अन्तर्गत वे पाठक सम्बोधन के भी शिकार होते हैं। 'परख' में तो अनेक स्थलों पर कथाकार पाठक को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सम्बोधित करता है। 'परख' में सत्यधन हमारे ‘महाशय'114 हैं। 'सुनीता' में यह प्रवृत्ति विद्यमान है, जब सत्या के विषय में लेखक कहता है कि अठारह वर्ष की लड़की को आप अनजान मत जानिये 1115 यह प्रवृत्ति बहुत आगे तक 'विवर्त' में भी उपलब्ध होती है। जब लेखक पाठकों से कहता है--आइए एक तमाशा दिखाएँ ।18 प्रधानतया जैनेन्द्र की शैली मे मितव्ययिता विद्यमान है जिसमें संक्षिप्तता, सांकेतिकता तथा व्यंजना सम्मिलित है। कथाकार को बहुत विवरण विस्तार तथा खोलकर बात कहना पसन्द नहीं है। वह बात को संक्षेप में कहकर सन्तुष्ट हो जाता है। संक्षिप्तता की प्रवृत्ति ने कथानक-कथन, पात्रों के जीवन-चरित्र उनके रूप चित्रण, संवाद, वातावरण के रेखन, वाक्य-रचना तथा शब्दों के रूप-निर्माण का एक प्रसंग प्रस्तुत किया है----‘सार संक्षेप यह है मित्र के पुत्र बैरिस्टर नरेशचन्द्र वहाँ आये, परिवार की दो महिलाएं वहाँ आयीं। दो रोज रहीं और प्रसन्न लौटे। फिर दोनों ओर से तैयारियाँ हुई और जल्दी ही विवाह हो गया। ऐसा प्रतीत होता है कि स्थूल चित्रण की ओर कथाकार बिलकुल रुचि नहीं रखता है।
113. जैनेन्द्र कुमार - परख, पृष्ठ -7 114. वही, पृष्ठ -8 115. जैनेन्द्र कुमार - सुनीता, पृष्ठ - 206 116. जैनेन्द्र कुमार - विवर्त, पृष्ठ -8 117 वही, पृष्ठ -19
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